कविता मांग दहेज की..
"कितनी ही रसोई में चूल्हे व्यंजन
के लिए नहीं, बेटियों के लिए
जलाएं जाते है।
खीर की मिठास जो सबके दिलों
में भरने चली थी , "राख सी घर की
आंगन पर पड़ी है "।
मांग दहेज़ की क्या कर गई
तिनके तिनके जैसी जिंदगी बिखर
गई।
अनुप्रिया कुमारी

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