ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

हरेंद्र विक्रम सिंह गौर

आपसे मेरी मोहब्बत के चर्चे जब सरेआम हो गए। 
आप मुकरे एक पल को क्या हम बदनाम हो गए ।।
आपने तो समझ लिया कुछ पल का खेल इसे।
और हम खेल-खेल में ही बेकदर बेकाम हो गए ।।

जाने क्यों आपको अपनी सूरत पर इतना गुमान हो गया।
हम तो समझे थे इक्का आपको 
आप मामूली गुलाम हो गये।।
 सोचा थाआप दुनिया का चमकता सितारा बनेंगे।
पर आप खुद को ही छुपा कर गुमनाम हो गए ।।

वो करते रहे बार बार नजरों से वार मुझ पर।
 फिर भी मेरे दिल के अरमां  उनके नाम  हो गए।।
हम तो पीते रहे भर -भर के नजरों से नजरों में उनको।
जैसे वो किसी मायकश का सबसे हंसी जाम हो गए।।

 हम ढूंढ रहे हैं  तड़पकर उनको शामो -सहर इस तरह
जैसे वो,घायल  परिन्दा के हर दर्द की  आराम हो गए।।

जय हिन्द  जय भारत वंदेमातरम  ।

घायल परिन्दा 

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