ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शरद पूर्णिमा-कमलेश कुमार कारुष बबुरा रघुनाथ सिंह मिर्जापुरी।

शरद पूर्णिमा

शरद  पूर्णिमा  पूर्ण  प्रकाश  में, 
चांद  शुशोभित  विना  आवरण।
चम   चम   चमक   रही   रश्मी,  
नियन  रजत  कण  भूमि  वरण।।

ओ  शीतल, मंद,  सुगंध  बयारी,
बह  सन  सन   मन   मोहती  है।
मानो सज धज  तरह  विवहिता,
बैठि   अंक    नभ   सोहती   है।।

आ   जाओ   अवनी   पर  चन्दा,
हो   रहा    प्रतिक्षा   सदियों   से।
कल कल  ध्वनि  आ  रही  सदा,
ओ   प्यारी   प्यारी   नदियों   से।।

शरद   पूर्णिमा   पावन  पर्व   पर,
हे   मयंक  तुम्हारा    स्वागत   है।
विखेर  मयूख  को  चिर  कालीन,
दिव्य    सुशोभित     लागत    है।।

आंख  मिचौली  बिजली  बादल,
रहे  खेल   अति   चकाचौंध   में।
कारुष   कलम   ब्यस्त   चाँदनी,
खिला हुआ दिल  मिला कौंध में।।

कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष 
बबुरा रघुनाथ सिंह 
मिर्जापुरी।

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