अगर सुबह ना होता,कभी कमल ना खिल पाता।
धूल धरा से धूप बेचारा, कभी नही मिल पाता।।
चिड़ियों की चहकीले सुर,नही कान तक आता।
सोते सोते थक जाते,किसी को कुछ ना भाता।।
अवनी अंधकार मय होती,अन्न नही उग पाता।
सब जग भूखो रह रहके,बस ऐसे ही मर जाता।।
रात-दिन दोनों की जरूरत, दोनो से है नाता।
कभी सुबह तो कभी शाम,एक एक कर आता।।
कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष
मिर्जापुर

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