ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

बाल दिवस-प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )

बाल दिवस
बाल मन हैं जीवन का अलग ही आधार 
इसमें आते रहते हैं नित-नए  उर्वर विचार  
हम पढ़ते है महत्व बाल मन का मगर 
हम सही से अपनाए इसको जीवन आचरण 
 में तो बन जायेंगे हमारे निर्मल आचार ।

बाल मन की तरह हमारी सुंदर सोच है 
तो सारा संसार हमको सुंदर नज़र आएगा ।
ज़िंदगी में हम कभी भी अपने किसी भी ,
तरह के हुनर पर किंचित घमंड ना करे ।
क्योंकि बाल मन की तरह निर्मलता 
जब खत्म होती है तो पत्थर के 
पानी में गिरने के समान अपने ही 
कर्म रूपी वजन में हम भारी हो जाते है ।

बाल मन पल - पल में हंसना 
पल - पल में रोना और रूठ जाना 
हर पल को अपने ढंग से जीता हैं ।
लम्बी डोर न किसी बात की खिंचता
भूल भूत  को,वर्तमान में ही जीता।
नहीं परिभाषा मैं दुश्मनी की जानता
सब मुझे अपने से ही प्यारे प्यारे लगते
अपना पराया क्या होता ? मिल बांटकर 
साथ सबके खाता पीता खेला करता।

प्रदीप छाजेड़ 
( बोरावड़ )

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