शीर्षक:- खुद को ढूंढा कर
हौंसले मजबूत कर चल,चला चल,
किनारे जरूर आयेंगे, बहा कर ।
खोकर खुद को खुद में, खुद को ढूंढा कर,
लोगों से तो मिलन सम्भव, कभी तू स्वयं से भी मिला कर ।
गहरे समन्दर सा सिकन्दर हमेशा रहा कर,
गम तो सजनी है, साजन सा झेला कर ।
जंगल की आग है ,बारिश से ही बुझेगी,
सावन प्रेम नीर-सा, क्रोध पर बरसा कर ।
खुद की इंसानियत मरने ना पाये कभी,
नर से नारायण की ओर अग्रसर हुआ कर। ।
आशातीत चर्चित, परिभाषित देश भारत,
कर्म प्रधानमंत्री-सा, अनवरत अच्छे किया कर ।
उम्मीद तुम्हीं से, नवयुवा युग सुनों,
नित नये-नये कीर्तिमान गढ़ा कर।
साहित्य का हृदय प्रेम है ,
प्रेम नगर में, प्रेम से, प्रेम के साथ,
'प्रति' लिखित पढ़ा कर ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई


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