किसी की बेबसी इतनी न हो टूटके बिखर जाए
और मजबूरी भी न हो ऐसी कि, घुटके मर जाए
बागबां मुड़ मुड़के देखा करे मौसमों के मिज़ाज
शाखों का नहीं कोई भी गुल बेवक्त बिखर जाए
कुछ लोग त़ो ऐसे मिलें इस दौरे सफर में हमको
मुलाकात हो नजरों में ठहरे, दिल में उतर जाए
अपने लिए दामन गर फैलाएं भी तो, किस लिए
अरदास भी हो अपनी कि दुश्मन भी संवर जाए
जिन बच्चों के लिए भूख भी,आदत में शुमार हो
उन सब के घरों में भी तो उम्मीद का सहर आए
कोशिशें हो आफ़ताब को फ़लक से उतार लाएँ
अंधेरों की अंधेरगर्दियाँ , ख़ामोशी से गुजर जाए
प्रेम शंकर देव
दीपा हास्पिटल
पीलीभीत उत्तर प्रदेश
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