ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शिशिरकाल मनहरण छंद-कमलेश कुमार कारुष मिर्जापुर

शिशिरकाल
मनहरण छंद

ओ शिशिर ॠतु आया,
थर  थर   कंपा  काया,
बड़  लंबी  रात  लाया,
शिशिर    का   धमाल।।

सब शी  शी  हैं  करते,
बांध     मुठ्ठी    टहरते,
टपक    ओस    झरते,
किया  ओला   बेहाल।।

शिशिरकाल  काल सा,
कंपाया  बुरा  हाल सा,
यूं विछा हुआ जाल सा,
प्राण     वूढ़े     बबाल।।

बच्चे  ढकते  ना  कान,
खेलें   बैट  बाल  तान,
नही शीत का  है  ज्ञान,
ठिठुर      गले     गाल।।

बिक   रहे   ऊनी   पट,
सब  गली   गली   डट,
कनटोप   खटा    खट,
सब   ले    रहे    साल।

उपड़ौरों   के    ढेर  में,
यूं   छिपे  सर्प  मेर  में,
है  ताप   यहां  खेर  में,
सुरक्षित     है     काल।

यूं  ऐसा  शिशिर  घाम,
छूके  दे   रहा  आराम,
सब  सही   करे  काम,
कारुष    मस्त    हाल।।

कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष 
मिर्जापुर

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