ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

धूल रहे ना मन आंगन में-पंकज सिंह"दिनकर" (अर्कवंशी) लखनऊ उत्तर प्रदेश

धूल रहे ना मन आंगन में

रिश्तों  में  अपनत्व  हो  रहो   हमेशा  झुककर।
धूल रहे ना मन आंगन में हसो हमेशा खुलकर।
वाणी  में   हो    मृदुलता  मिले   सदा  सम्मान।
जीवन में   उन्नति   करो  नही   होय अभिमान।

सूखे  पेड़   पर    परिंदे    भी  घर  नही  बनाते।
जो  होते    हरे वृक्ष   वो  अकड़ नही दिखलाते।
उसी प्रकार से मानव  जग में अपनाए सदचार।
जीवन  पथ  रोशन  हो जाए होय  सदा सत्कार।

नही  रहोगे यदि  मिलकर   तो लाभ दूसरा पाय।
क्या  होती  है  कूटनीति  यह  तुमको दिखलाय।
प्रेम पूर्वक  मिलो सभी   से   वाणी  शीतल होय।
औरन  को   शीतल   करे मन  का  आपा  खोय।

संस्कार का  द्योतक  भारत  इसका अद्भुत रूप।
रिश्तों में  झुककर  चलो   चमके  दिव्य  स्वरूप।
सूखे  पेड़  को सभी  काटते वक्त _वक्त की बात।
"दिनकर" प्रेम  पूर्वक  रहते  मिले नित्य सौगात।।

रचनाकर✍️
पंकज सिंह"दिनकर"
(अर्कवंशी) लखनऊ उत्तर प्रदेश

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