प्रेमिका और पत्नी के बीच।
जीवन पर्यन्त रहता है साथ,
जब-जब जाओ उस सफर पर,
पुनश्च खनकती हँसी को पाता है पास,
दिल की धड़कनें कूदने लगती हैं,
रोमावली विह्वल हो उड़ने लगती हैं।
जिस गली में रोज का आना-जाना रहता है,
एकाएक वो गली;
अजीब कुछ अलग सी लगने लगती है।
दूसरे सफर में पहले सफर का आनन्द,
दूसरे सफर को पहुँचा देता परमानन्द में।
ना कोई बात ना कोई दिनहार चमत्कार को सोचती,
बस डूबी रहती सुखद सुकुन दिव्यानन्द में ।
डुबकी लगाते-लगाते दूसरे छोर पर पहुँच जाती हूँ,
क्यूँ भला ऐसा होता है?
के विचार पर अटक जाती हूँ।
सफर के सुकुन के पल क्यूँ विस्मृत नहीं होते?
अपने भीतर सुख-दुःख का भीषण, प्रतिकार पाती हूँ ।
सुखमय समय ज्यादा था जीवन में,
पर दिखा बहुत कम,
दुख की दुल्हन आकर कहती ,
मेरे जीवन तू मेरा सनम।
अनुभव ने दोनों को बोला ये सुनिश्चित आधार है,
प्रेमिका और पत्नी के बीच,
झूलता,आनन्दित होता सबका जीवन ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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