ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

इश्क इक अदद ही तो है- अादिति चौहान

इश्क इक अदद ही तो है।

 छलकने मत  दे अभी अपने सब्र का प्याला!
ये सब्र का ही तो असल इम्तिहान है।

नभ में उषा की रंगत,सूरज का मुस्कुराना!
ये खुशगवार मंजर,जरा चिलमन से तो झांको,
उसने कहा ,उसके पास छोटा सा ह्रदय है! 
जैसे धूप कहे उसके पास थोड़ी सी रोशनी है,

आग कहे उसके पास थोड़ी सी गर्माहट है!
धूप नहीं कहती कि उसके पास अंतरिक्ष है ;
आग नहीं कहती कि उसके पास लपटें हैं 
समंदर नहीं बताता कि वो कितना गहरा है !

लहरें बताती है कि ज्वार भाटा कैसा है ?
ये इश्क वो कोंपल है किसी वृक्ष पर!
 नये उगे किसलयों में सिहरन हो जैसे;

चहकता है सृष्टि की मधुर ध्वनि कान्हा!
 के मुरली की ध्वनि गुंजारों से,
ब्रह्मांड में झंकृत होता है सुख का वृंदावन!

इश्क की गलियां ,राधे रानी की बतियां!!
औरों के सुख सबकी खुशियां!
इश्क की नाकामियां,हुस्न की कामयाबीयां
यही तो हुनर है इश्क की  बाजियों का ;
अंधेरों में जुगुनूओं से लेकर चिराग;
इश्क की गलियों को जगमगाता रहा।

स्वरचित सृजन 
अदिति चव्हाण 

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