ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

सब कुछ छोड़ कर- प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"

शीर्षक:- सब कुछ छोड़ कर।

चीर कर हाथ अपना,
 मेरा नाम बदनाम लिखते हैं ।
  भावनाओं का बलात्कार की हो...,
   दफा तीन सौ छिहत्तर के तहत,
    न्याय की  गुहार करते हैं।

पहले नजदीकियों के पैमाने पढ़ाते,
 याद को बेवजह याद के पाजामे पहनाते ।
  कहते हैं..,
 मायने ये नहीं कि रिश्ता बेनाम हमारा,
   मिलन जरुरी है वर्ना जनाज़ा तुम्हारा अभी सजाते।

 सुनो ना...! 
चाहत है हमें तुमसे,
  कईयों दफा सुनाया होगा उसने ,
   बेताबी बेबाकी से;
    ना जाने कितनी दफा हक जताया होगा उसने ।
      मना किया तो श्रद्धा, साक्षी सा हश्र,
       माना तो, 
        एक सौ बीस का धारा लगाया होगा उसने।

फरेब का खेल फकीर बन खेलते हैं,
  तुम हुस्न की परी हो; जान, जानेमन बोलते हैं ।
    सब कुछ छोड़कर, तेरा आशिक बन गया हूँ ,
      तुम्हारे हर पल-पल को बारीकी से तौलते हैं ।

ऐसा ही प्रेम आजकल सोशल सक्रिय है,
  अता-पता किसी को किसी का नहीं,
    फिर भी प्रिय है ।
     सुन्दर नयन नक्स; तुम हमारे हम तुम्हारे ,
       महानता नारियों की, छिछोरापन अनदेखा कर
         बनी सिय है ।

           (स्वरचित)
          प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
                चेन्नई

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