कहत कबीरा सुन भाई साधों कोरी
गंजी रंग दीन्हो रे रंग भुजंग
अब कैसे चढ़े इसमें दूजों रंग
काहू ने रंग दीन्हा वाणी के मद में
काहू ने रंग लीन्हा रूप के मद में
काहू ने रंग दीन्हा स्पर्श विषय में
काहू ने रंग दीन्हा आनंद भाव में
काहू ने रंग दीन्हा सुगंध विषय में
अब यह कोरी गंजी बन गई विष की बेलरी
अब कैसे के छूटे यह रंग भुजंग छड़ में
कहत कबीरा सुन भाई साधो कोरी गंजी
रंग दीन्हो रे रंग दीन्हो रे रंग भुजंग में।
अब चढत न दूजो रंग।
मानवता हो रही जग में खंड खंड
अब कैसे बनाऊं भारत अखंड
हम सब सीख सिखा रहे जन जन
अनुशासन प्रशासन के अंग ढंग
स्वशासन के सुध बुध भूल गए
अब साधू संत महंत।।
ये कोरी गंजी रंग गई रे रंग भुजंग
तुम बाहर से लगा रहे बजुर कपाट
पांच चोर घट भीतर बैठे का करहै
ये बाहर लगे बजुर कपाट
भीतर बैठे पांच चोर घर लूट रहे
हम काहू का नहीं भया आज तक ज्ञान
कहत कबीरा सुन भाई साधो कोरी गंजी
रंग दीन्हो रे रंग दीन्हो रे रंग भुजंग।।
मानवता हो रही खंड खंड
अब कैसे बनाऊं भारत अखंड
कहत कबीरा सुन भाई साधो कोरी गंजी
रंग दीन्हो रे रंग दीन्हो रे रंग भुजंग।।
🙏🏽🙏🏽
भारत प्रसाद प्रजापति शिक्षक सतना मध्यप्रदेश
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