ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

महावीर के आस - पास-प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)

महावीर के आस - पास
जाति का कोई महत्व नहीं हैं , वह जन्मना नहीं , कर्मणा होती हैं - यह सूत्र जातीय समस्या की भविष्यवाणी हैं ।धर्म और संप्रदाय एक नहीं हैं । यह प्रवचन सांप्रदायिक अभिनिवेश की समस्या की और अंगुलि - निर्देश करता हैं । समस्या आज की और समाधान महावीर का प्रतीति करा रहा हैं - महावीर अतीत नहीं ,वर्तमान हैं , वैचारिक जगत ने उनके पुनर्जन्म की स्वीकृति दी हैं । महावीर है एक मानव , एक दृष्टिकोण , एक सत्य । मानव मरणधर्मा हैं । वह जन्म लेता है और एक अवधि के बाद दिवंगत हो जाता हैं । दृष्टिकोण दिशादर्शन देता हैं , जागरण का शंख फूंकता हैं , बिंब और प्रतिबिंब के मध्य भेदरेखा खिंचता हैं । सत्य त्रैकालिक होता हैं । वह कभी प्रकाशी होता हैं । कभी बादलों से ढक जाता हैं और कभी फिर प्रकाशी बन जाता हैं । महावीर देह के बन्धन को छोड़ मुक्त हो गए । अवतारवाद उन्हें मान्य नहीं था । मानव महावीर का पुनर्जन्म संभव नहीं रहा ।
महावीर के दर्शन और सत्य पर एक सघन आवरण आता हुआ - सा दिखाई दिया । युगधारा बदली । वैज्ञानिक युग का प्रवर्त्तन हो गया । प्रतीत हुआ - महावीर का दर्शन प्रासंगिक हो रहा हैं । प्रासंगिकता इतनी बढ़ी कि उसने महावीर के पुनर्जन्म को अनुभूति के स्तर पर रेखांकित कर दिया । वर्तमान अतित बनता हैं । यह सामान्य अवधारणा हैं । वैज्ञानिक अवधारणा यह भी हैं- अतित फिर वर्तमान बनता हैं । हम चांदनी से परिचित हैं ।आकाश में चांद को देखते है , उसकी चांदनी धरती पर चमकती हैं । मनुष्य शांति , शीतलता एवं प्रकाश - सबका एक साथ अनुभव करता हैं । अनजाना हैं चिदाकाश , अनजाना है चांद 
और अनजानी हैं चांदनी , इसलिये कि वे सब भीतर हैं ।भीतर में जो हैं , उसे देखने की खिड़कियाँ बंद हैं , दरवाजे भी बंद हैं । यदि हम इन्द्रियो की दिशा बदले , उनकी बहिर्मुखता को अंतर्मुखता में बदल दें , मन की चंचलता पर कोई अंकुश लगा पांए तो हमको खिड़कियाँ खुलती सी नजर आएंगी । यह कर्मों का चित्र यहाँ सचमुच ही विचित्र है । कितने -कितने जन्मों के साथ जुड़ा हुआ |
इस वर्तमान जीवन का नाता है । आदमी बुद्धिमान होकर भी जीवन के इस सच को क्यों नही समझ पाता है ।लंबे सफर में न धन साथ में जाता है न परिवार, फिर भी व्यर्थ ढोने से कहां चूकते हैं हम यह भार ? इसलिए हमें स्थाई शांति व स्थाई सुख के पथ 
को ही अपनाना है और उसी दिशा में अपने चरणों को सदा - सदा गतिमान बनाना है । भगवान महावीर के पास एक देवता क़ुसठ रोगी बनकर आया तो राजा श्रेणीक को बोला मत मर ।भगवान महावीर को देख कर बोला मर जाओ।अभय कुमार को देख कर बोला मर या जीं । राजा श्रेणीक को ग़ुस्सा आया ओर सेनिको को क़ुसठ रोगी को मारने के लिए कहा तो भगवान महावीर ने कहा रुक जाओ तो राजा ने प्रशन किया की भगवान उसने आपको कहाँ मर जाओं तो भगवान ने कहा राजन यह रोगी नहीं यह रोगी के रूप में देवता हैं ओर इसने तुम्हें देख कर कहा कीं मत मर तो इसका अर्थ हैं कीं तुम यहाँ सुख भोग रहे हों ओर आगे तुम्हारे लियें नरक तैयार हैं इसलिए इसने ऐसा कहा। इसने मुझे देख कर कहा कीं मर जाओं तो इसका अर्थ हैं कीं आगे के लियें मोक्ष मेरी प्रतीक्षा कर रहा हैं इसलिए इसने ऐसा कहा । अभयकुमार को देख कर कहा मर या जीं तो इसका अर्थ हैं यहाँ पर भी सुख भोग रहा हैं ओर आगे भी देवलोक में सुख भोगेगा इसलिए इसने ऐसा कहा राजन । यह सुनकर राजा को सब समझ आ गया । विचारों कीं शुद्धता आत्मा को कर्म से हल्का करते हैं ।विचारों की अशुद्धता आत्मा को कर्म से भारी करते हैं । इसलिए कहा हैं आओ करे विचार भरने सुविचारों के रत्नो का भंडार ।

 प्रदीप छाजेड़ 
( बोरावड़)

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