ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

हममें आ जायेंगी बंदिशे

विषय- हममें आ जायेंगी बंदिशे

प्रेम की गहराई,
ना कर तू ऐसी रुसवाई,
आ.....आजा,
अथाह प्रेम के सागर में,
डूबकियाँ लगा ले प्रिये,
चकाचौंध भरी दुनिया में,
ना डगमगा प्रिये,
सोने का हिरन ना मांग,
मेरी सामर्थ्य को पहचान,
इश्क जैसा चाहिए,
उससे भी ज्पादा देने का रखती अरमान!
पर,,,,
अगर तू करती जायेगी,
नित नवीन फरमाइशें,
फिर हममें आ जायेगी बंदिशे,
अब के बिछड़े; फिर ना मिल पायेंगे,
सच्ची मुहब्बत को फिर,
मुकाम तक कैसे ले जायेंगे??
सागर से गागर आ भरते है प्रिये,
सबसे अलग इश्क करते है प्रिये,
ना जिस्मानी ना रूहानी,
बिन देखे, बिन बोले, प्राकाम्य प्रेम करते है प्रिये....|

रचना मौलिक,स्वरचित और सर्वाधिक सुरक्षित है|

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
 

Post a Comment

0 Comments