ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

जाड़ा

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मनहरण घनाक्षरी
    $जाड़ा$
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ये जाड़े वाली है रात,
गल   रहा पूरा  गात,
यूं   सुर   सुर  समीर,
बढ़      रहा    गलन।

यूं  किटकिटात दांत,
अब निकले ना बात,
ओ  गन  गन  बदन,
है   मुश्किल  चलन।

देखो  रजाई सुहात,
देके ठंडक को मात,
यूं निकलो ना बाहर,
लो    गरमी   जलन।

गरम   गरम   भात,
बड़ पकौड़ी छनात,
लेलें आनंद कारुष, 
नहिं   कोई  खलन।
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कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष 
मीरजापुर 
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