चेहरे की किताब
उलट पलट जो देखी चेहरे की किताब।
कोई मिला ऐसा जो था खिला गुलाब।।
सोचा इसे ही भेज दे "दोस्ती की अर्जी"
हां होगी या ना ऊपर वाले की मर्जी।।
उस खुदा का इतनी जल्दी चमत्कार हो गया।
मैं उसके दोस्तों में शुमार हो गया।।
मेरे शेरों पर अब ठेंगा आने लगा है।
दिल भेजते हैं वो तो दिल जाने लगा है।।
लिखकर महसूस करके जो संदेश नहीं दे पता है।
वो यार दिल देता है या ठेंगा दिखाता है।।
यही सच है और यहां का यही उसूल है।
" चेहरे की किताब" का हर पन्ना फिजूल है।।
© आलोक अजनबी
0 Comments