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गुरुकुल अखण्ड भारत साहित्य दिग्दर्शिका ई मैगजीन 13 फरवरी 2024

गुरुकुल अखण्ड भारत
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गुरुकुल अखण्ड भारत साहित्य दिग्दर्शिका
Tuesday,13-February, 2024
बदलाव अच्छा ही है

प्रदीप छाजेड़ (बोरावड़ )

वो जीवन ही क्या जिसमें उतार-चढ़ाव ना आये।जीवन में बदलाव नहीं आयें । जब प्रतिकूल समय का सही से सामना करेंग़े और उस दर्द को सहने की हिम्मत हम जुटायेंगे तब ही अनुकूल समय की ख़ुशियाँ महसूस कर पायेंगे। इस जीवन में हर वस्तु परिवर्तन शील है। हर वस्तु में बदलाव होता है । पानी वो ही होता है पर फ्रिज़र में रख देंगे तो बर्फ़ बन जाती है और फ़्रीज़ के बाहर रख देंगे तो वापिस पानी। भगवान ने मनुष्य को वो समझ दी है कि जब समय विपरीत बदलाव का हो तो थोड़ा संयम धारण करे।मन में यही सही चिंतन करे कि जब एक दिन उदय होने से लेकर वापिस दूसरे दिन उदय तक कितने पहर देखता है।ठीक वैसे ही जीवन में बदलाव आये तो यही चिंतन रहे कि यह भी स्थायी नहीं रहेगा।हर अमावस्य की घोर अंधेरी रात आयी है तो कुछ दिनो बाद पूनम की चाँदनी भी दिखायी देगी। हम समझे सही से हालात को और जज़्बात को ।जीवन में आए उतार-चढ़ाव , धूप-छांव की तरह होते है ।और अपनी अपनी समझ की बात को । वैसे तो कोई कोरा कागज़ भी पढ़ लेता है तो कोई पूरी किताब भी सही से नहीं समझता है । क्योंकि हम नहीं भूलते दो चीज़ें चाहे जितना भी उनको भुलाओ । एक घाव और दूसरा लगाव ।तभी तो हमारा एक गलत कदम बन जाता हैं नासुर ।क्यों ना हम करे इस नासूर का विनाश और पहने जीवन आनंद का ताज। यह दुनिया है जहाँ प्रकृति के अनेक रूप हैं- कभी छाँव, कभी धूप है । विभिन्नताएँ यहाँ पग-पग पर हैं । चाहे जीवन हो या प्राकृतिक संरचना यहाँ विविधता के कई स्वरूप हैं । कहीं पथरीले पहाड़ है तो कहीं मरुभूमि है । कहीं पठार,तो कहीं समभूमि है । इन विविधताओं में हमें रहना है । इन्हीं में हमें सफल जीवन जीना है ।इस तथ्य को आत्मसात् कर विवेक का सही से सहारा लें तो जीवन हमारा खुशगवार हो जायेगा वरना जीना दुश्वार हो जायेगा ।स्तिथि हमारे अनुरूप हो या नहीं , हम समता और सामंजस्य से संतुलन बैठायें । बदलाव को हम जीवन का हिस्सा मान,हँसते-हँसते आगे बढ़ते जायें ।वो कश्ती ही क्या ; जो तूफ़ानों को झेल न पाये , वो इंसाँ क्या जो प्रतिकूलता में घबरा जाये । परिस्तिथियाँ आती हैं ।अपना रंग दिखाती हैं । हमें कुछ न कुछ सिखा जाती हैं ।अत: ये तो हमें बदलाव को तराशने का साधन हैं । हमें प्रगतिशील बनाने का माध्यम है।अत: मानें हम कर्मों का उदय बदलाव को प्रतिकूल स्तिथियाँ जो हमारी शक्ति और हिम्मत को चुनौती है ।उसमें हम पास हुए तो निश्चित हमारी उन्नति है । देव गुरु धर्म की शरण सदैव सुखकारी है ।अनेको मंत्र बताये गुरुओं ने जो भव भय हारी है । बना सुरक्षा कवच बदलाव का हम अभय मंगलकारी हो जाये।क्योंकि तप संयम त्याग आदि का जो बनाएं रक्षा कवच वह बदलाव सबमें भारी है ।इससे भाग जाएगा सभी तरह का मौत आदि का भय। और हो जाएगा सही से अच्छा व रासायनिक बदलाव। मन आनंदित बन जायेगा। मौत का भय कभी न सताएगा।मन हो जाएगा मौत आदि सब होने वाले बदलाव के लिये तैयार । जब होना होगा बदलाव तो बदलाव होगा ही । सुख - दुःख साथ जुड़े हुए है । एक चोगा खोल दूसरा हमको बदलाव का पहनाएगी। आत्मा अजर अमर है न नाश पाएगी। इसलिये परिवर्तनशील जीवन में बदलाव अच्छा ही है ।

सुकून को न मिला गांव

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

गांव की शीतल हवा, छूकर हो रही खफा, इतने दिनों बाद याद आई, खण्डहर हुई गिरफ्तार तेरी तन्हाई । मैं तेरा अपना घरौंदा, गलियों चौबारे फैला करौधा। तूत का मीठा बीज, बेर की टहनी गई सूख। नहीं कलरव अब पक्षियों का, आना जाना खत्म भिक्षुओं का। दिन की शुरुआत कब हुई? मुर्गा,कौवा बोले तब तक अब सोई। बागान की रौनक फ्लैट ले लिए, छप्पर अब टीन हो लिए। सारे पेड़ की कटाई हो गई, जीवन से गांव नाम की छॅटाई हो गई । शहरीकरण की अंधी आधुनिकीकरण, सुकुन को न मिला गांव,ना शहर में शरण! हाय क्या वापिस हो पायेगी गांव की महक? या जीवन जी तोड़ देगी शहर की सड़क

गांव की शीतल हवा

ना ही इंतज़ार मुझे, ना कोई दीदार की उम्मीद, चलती ट्रेन-सी अपनी जिन्दगी! ना जीवंत जीवन की जीत अडिग, चुनरी की उड़ती रंगत, रहे उम्र भर जीवन-संगत, घूॅघट की ओट में लजाती, दुल्हन सी लज्जित पंगत। महीना सुहाने प्यार का, इजहार दिले-बहार का? सत्ताइस बसंत पार किए, ना प्यार ना इजहार किए। इठलाती यौवना आई, बलखाती जुल्फ ना सुलझा पाई, ठण्डक-गर्माहट और रसीली बरसात, गदराये यौवन को इश्क में ना फंसा पाई। बस एक उम्मीद जताई मन ने, नवीन संचार,नूतन परिवेश बने वतन में, कलियाँ मधुमास की, भ्रमण ऊर्जावान, नवयौवन का समर्पण, भारत के चरण में।

"मुझको चाहत से ज्यादा नहीं चाहिए हाँ मगर कुछ भी आधा नहीं चाहिए मुझको तू चाहिए और कुछ भी नहीं इस जनम तुझसे वादा नहीं चाहिए " - राघवेंद्र

बाल गीत:मेरा लड्डू मेरे घर है लड्डू गोपाला। छोटा सा बालक मतवाला।। मम्मी उसको रोज नहलाती। बहना पहले खाना खिलाती रंग बिरंगे कपड़े लाती। सिर पर टोपी भी पहनाती।। सर्दी में तो शामत आई। "लड्डू" की है छोटी सी रजाई।। जिस दिन से वो घर में आया जन्मदिन हर साल मनाया।। केक काटते बनते पकवान। वाह रे, लड्डू! तेरी शान।। लड्डू गोपाल भी, रखता है सबका ध्यान। सब काम पूरे करवाता दिलवाता सम्मान।। © आलोक अजनबी

बेटी से शान घर की

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"

हर जगह सफल रहना मेरी बेटी, मेरे विश्वास पर विश्वास रखना मेरी बेटी, अँगुली पकड़कर चलना सिखाऊॅगी मैं, हमेशा जोश-उत्साह से चलना मेरी बेटी। अच्छी बेटी,बहू , नारी बनना मेरी बेटी। राह रोकने वालों की कमी नहीं , दरिन्दगी करने वालों की कमी नहीं, पर घबरा कर रूक जाना नहीं । असम्भव को सम्भव करना है तुझे, मुश्किल, असम्भव, असफलता जैसे शब्दों से, डराने वालों की कमी नहीं। पापा के घर की शान हो , ससुर के घर का अभिमान हो । जिस भी घर में रहना मेरी बेटी, आन बान शान घर जहान हो।

सांस्कृतिक अनुपमा,शेखावाटी उत्सव में

महेन्द्र कुमार

वीर भूमि शेखावाटी उत्संग, अति शोभित नवलगढ़ नगरी । ठाकुर नवलसिंह संस्थापक, उपमा धन धान्य वैभव गगरी । मोहक रोहक पुरात्तन दीर्घा, आकर्षक हवेलियां घनत्व में । सांस्कृतिक अनुपमा,शेखावाटी उत्सव में ।। अद्भुत भित्ति चित्र स्वर्ण शहर, मारवाड़ी समुदाय अवतरण स्थली । छियालीस ग्राम पंचायत परिध छवि, द्वि कस्बाई आभा मखमली । स्नेह प्रेम भाईचारा अथाह, पारंपरिक आह्लाद अपनत्व में। सांस्कृतिक अनुपमा,शेखावाटी उत्सव में ।। शिक्षा संग कदम चाल, आत्मसात प्रौद्योगिकी नवाचार । लोक रंग अठखेलियों सह, नित वंदित मर्यादा संस्कार । मुरारका फाउंडेशन प्रेरक प्रयास, जोश उत्साह उमंग जड़त्व में । सांस्कृतिक अनुपमा ,शेखावाटी उत्सव में ।। वात्सरिक बेला सताईसवीं, अनंत खुशियां सूर्यमंडल प्रांगण । प्राचीन खेल लोक हर्षल छटा, व्यंजन आस्वाद लोकरंजन । असीम आभार आयोजनकर्ता, संरक्षण पहल थाती सत्व में । सांस्कृतिक अनुपमा , शेखावाटी उत्सव में ।। जीवंत कर इतिहास संस्कृति, नई पीढ़ी नव प्रेरणा सेतु । रज रज गौरव अनुभूति, कला स्पंदन अधुना समाज हेतु । कृपा वृष्टि बाबा राम सा पीर, सुख समृद्धि आनंद जनत्व में । सांस्कृतिक अनुपमा,शेखावाटी उत्सव में ।।

जब तेरी आंखों से पीते थे तू मुझे दीवाना कहती थी। आज तेरी बेवफाई में जाम टकराए तो शराबी हो गए।। तेरी जफाओं को हमने सहा बड़ी ही खामोशी से । हम जरा बहक क्या गए कई सवालों के जवाबी हो गए।। हरेन्द्र विक्रम सिंह गौर

सब सान धरी क धरी रहिहीं, जब छांड़ि क साथ सरीर जई रे। धन धाम धरा सब छूटि जई, जब लेइ निता घर काल अई रे। मन कै अभिमान गुमान कुछू, छुटिहीं इहँईं नहिं बात नई रे। भव सागर "राघव" नाउं करै, बनि कै सुनि ले पतवार अई रे।। ----------------------------------------- राघव प्रसाद विश्वकर्मा "राघव"सुख साधन से रहे समुन्नत... सबसे मधुरिम,सबसे सुन्नर,नयन क तारा, देश हमार, सबसे उप्पर,रहे समुन्नत,भगवन इ पावन देश हमार। सगरो मौसम इहाँ सुहावे,षड् ऋतुअन क देश हमार, भरल फुलाइल,इ सोन क चिरई ह,पावन देश हमार। होखं फिर से इ देश में भगवन् ब्रह्म तेजधारी विद्वान, होखं शूरवीर महारथी धनुर्धर,लक्ष्य प्रहारी-प्रतिमान। पयस्वनी हों गौमाता,औ'बहे दूध क अविरल पयधार, मजगर बोझ उठावें बैला,ना ठहरें इ अधराहे मझधार। दुर्गम राह हो, वा रन टंकार,धावें अश्व ले के असवार, सैन्धव-गति हो पवन सरीखा,अरि.दल पे करें प्रहार। शिक्षित हों सब ललना बेटी,सद्गुन क होवै विस्तार, रथारूढ़ भारत वीरन संग,रणचंडी क इ बनें अवतार। इनकर गुन गावल जा सगरो,हरशूँ व्यापक हों संसार, सुख साधन से रहे समुन्नत,भगवन पावन देश हमार। यज्ञकर्म निरत सुकर्मी होखं,वैदिक हो आचार विचार, इ देशवा क संतति सगरो,होखं सौम्य सरल व्यवहार। देश क भक्ति अविरल होवे,अस्मिता क होखं रखवार, योगक्षेम सकल सिद्ध हो,विश् जन क होभरल भंडार। सब साधन से रहे समुन्नत,भगवन इ पावन देश हमार, रजकन जेकर माथे क चन्नन,जननीभारत देश हमार। (यजुर्वेदः सं०22/22) ✍️चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन "

व्यक्ति में व्यक्तित्व की पहचान होनी चाहिए। अधरों पर मंद , मंद मुस्कान होनी चाहिए। वाणी में मिठास हो खुद पर विश्वास हो। इंसान में इंसानियत की आन होनी चाहिए।। पंकज सिंह "दिनकर" (अर्कवंशी) लखनऊ उत्तर प्रदेश

पर तू नही आया परदेशी

पूनम सिंह भदौरिया, दिल्ली

कुछ सर्द हवा ऐसी है चली, पर दिल में गम की होली जली । कितने मौसम आ चले गए, पर तू न आया परदेशी।। पेड़ो पर आई हरियाली, फूलों ने भी खुशबू फैलाई। देखो फिर से ऋतु वसंत आई, पर तू नही आया परदेशी।। सरसो पीली से खेत भरा, सुंदरता से खिल उठी धरा । पतझड़ भी आकर चले गए पर तू नही आया परदेशी।। अब आंखे भी थक चूर हुई, तेरी राह देख मजबूर हुई। जीवन की आशा दूर हुई, पर तू नही आया परदेशी।।

डॉ .चंद्रदत्त शर्मा

लौहपुरुष जीवन की भट्टी में खूब जला हूं लोहा तो पिंघलता है, मैं गला हूं मुझे ढाला गया कितने सांचों में तुम्हारे ताप से बहकर चला हूं। वक्त के हथौड़े भी बहुत सहे मैने आ! उफ!तक कब हैं कहे मैंने... अस्तित्व मिटाने कब कसर छोड़ी तन- मन टूटा प्राण पकड़े रहे मैने। ताप सह सह कर मैं ज्वाला हुआ विष पचाकर तन शिवाला हुआ प्रहार सह बेअसर फौलाद बना लौहपुरुष युग का निराला बना।

जनता ही सर्वोच्च विधाता

आदित्य कुमार

वर्षों से सही गुलामी पर अब वक्त हुआ, राजा के प्रति है रुख जनता का सख्त हुआ, अब और नहीं बस बहुत खेल शासन के खेले, वर्षों वर्षों तक राज कर लिया स्वयं अकेले। शायद जनता को अब ये मंजूर नहीं, गणतंत्र अधिक अब और दिनों तक दूर नहीं, सोई जनता को राजा और अंग्रेजों से, दुख दर्द मिले काफी जनता ने सभी सहे, पर अब पलटा है वक्त मिला अधिकार है अब, जनता को जुल्मी तंत्र नही स्वीकार है अब, अब जाग गई जनता में हैं स्वामित्व आग, अब राजतंत्र चल भाग भाग तू भाग भाग। अब गद्दी पे किसी एक का हो अधिकार नही, हो कोई राजा का बेटा हकदार नहीं, अब खुद जनता गद्दी पे हुई विराज सुनो, जनता ने पहन लिया सत्ता का ताज सुनो, अब जनता से कोई बड़ा नहीं कोई उच्च नही, अब जनता राजा के आगे है तुच्छ नही, मौलिक अधिकारों से प्रजा ने श्रृंगार किया, अब स्वयं प्रजा को राजा का अधिकार मिला, है संविधान की देन आज गणतंत्र मिला, जनता को राजा बनने का मंत्र मिला, संविधान से मिला आज अधिकार सभी, संविधान ने कहा राजा स्वीकार नहीं! अब ना कोई सेहंसा होगा, ना कोई रहे आलंपना, ना कोई अब हुकुम रहेंगे ना ही कोई बादशाह, ना कोई एक अकेला देश को लूटेगा, प्रश्न पूछने पर जनता को कूटेगा, अब तो जनता ही सर्वोच्च विधाता होगी, भारत की हर काल का निर्माता होगी, अब जो होगा जनता के मंथन से ही, देश चलेगा अब जनता के मन से ही, अब सोचों ये शक्ति किसने दी इनको, किसने बना दिया है राजा जन जन को, किसने इनके सिर पे मुकुट सजाया है? किसने गद्दी पे इनको बैठाया है? संविधान इसका उत्तर है उसने ही शक्ति दी है, इसलिए तो राजा ने जनता की अब भक्ति की है, अब अधिकार मिला जनता को मुंह खोल कुछ कहने का, वक्त हुआ अब खत्म राजा के राजतंत्र को सहने का।

शीर्षक: मेरा गणतंत्र नूतन वर्ष का 26वि दिन, साल उन्नीस सो पचास। हर भारतीय के लिए यह दिन तो है खास।। इस इस दिन हमने अपना संविधान किया था अंगीकार। जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार।। संसद से भी ऊपर है देश का संविधान। हर नागरिक को मिला है जीने का सम्मान।। कर्तव्य के साथ मिले हैं हमको मूल अधिकार। एक उंगली में बदल सकते हैं देश की सरकार।। राजपथ की झांकियां बताती देश है वैभवशाली।। सेना करती फूलों की वर्षा जनता बजाए ताली।। अधिकारों को जीना सीखें पर कर्तव्य ना भूल पाए।। इस बार गणतंत्र दिवस 'बालक राम" के साथ मनाएं।। आलोक अजनबी रोहतक (हरियाणा)

हमसे बदल गई हैं निगाहें तो क्या हुआ। गिला तो जब हो जो तूने किसी से निभाई हो।।

गांधी जी (कविता)

आदित्य कुमार, (बाल कवि)

गांधी है वो सांस जो बसे है मेरे देश में, हर कोई गांधी है अहिंसा रूपी वेश में, गांधी वो प्रकाश है जो तिमिर को दूर करें, देश छोड़ जाने खातिर शत्रु को मजबूर करें, गांधी है वो सोच जो कुबुद्धि पे प्रहार है, देश के लिए तो गांधी देव अवतार है, गांधी जी वो प्रेम है जो घृणा को मिटाते है, प्रेम और अहिंसा का महत्व ये समझाते है, गांधी जी का नाम मात्र जीत है संघर्ष है, गांधी जी की देन है कि देश ये उत्कर्ष है, गांधी जी वो मान है सम्मान है दिनमान है, अंग्रेज रूपी रात मिटाने वाला वो महान है, गांधी मेरे देश की वो आस्था है पंथ है, गांधी जी का योगदान देश को अनंत है, कोटि कोटि करते नमन उस रूप को, फिर से आना जरूरी गांधी के स्वरूप को।

-स्वाति शर्मा 'अतुल '

देश से है प्यार तो आरंभ करना चाहिए, आत्मा को आत्मा में सिक्त करना चाहिए। जाति हो या हो धर्म ,चाहे क्षेत्र की हो वेदना, गीता के उपदेश हो ,या रामायण की चेतना , वेदों के संचार क्षण हो ,या मानस की प्रेरणा, ढेर जो हैं ज्ञान का ,विस्तार अविरल बहना चाहिए। देश से है प्यार तो आरंभ करना चाहिए, आत्मा को आत्मा में सिक्त करना चाहिए। रोम रोम प्रेम में,नित गंगा यमुना बहती है , जहाँ ईश् शिवम भेष में ,हरएक दिन आरंभ है , राजनीति जैसी भी हो ,राज-हृदय आयाम में, जब देश ही है कामना, तो देश बढ़ना चाहिए। देश से है प्यार तो आरंभ करना चाहिए, आत्मा को आत्मा में सिक्त करना चाहिए।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

अनूप 'अंजान' कलियाना

हमनै बीड़ा ठाया सै या रीत पुगाणी सै बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बात समझाणी सै जो कदर करै सै बेटी की वो घर खुशहाल बणै सदा आशीर्वाद रहै ईश्वर का घर मालामाल बणै छोड़कै सारी कुरीति बढ़िया रीत चलानी सै बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बात समझाणी सै बेटे जैसी दौलत बेटी कदे हिणी ना समझ लियो दो घरा की शान है बेटी बेटा म्ह ना फर्क करो मैडल लावै चाँद पै जावैं करै पहलवानी सै बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बात समझाणी सै लाड़ली बेटी लाग्गै सबनै चांद-सितारा सी हो सही परवरिश बेटी की बेटा तै भारा सी जो राख्खै मान बेटी का वो असली हरियाणी सै बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बात समझाणी सै हमनै बीड़ा ठाया सै या रीत पुगाणी सै बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बात समझाणी सै

अपना लहू बहाकर सीन्चा था

श्रीपति रस्तोगी

भारत का सच्चा सेनानी था, अंगेजों से भरवाता पानी था। आजाद हिन्द का नायक था, सच मे महावीर बलिदानी था।।1।। भारत माँ का सच्चा सपूत था, स्वतंत्रता का वह महा दूत था। मुझे खून दो,मै आजादी दूंगा, देश को दिया ये नया सूत्र था।।2।। वीर सुभाष का जय घोष था, युवाओं मे भर दिया जोश था। नेता जी की रण नीति के आगे अन्ग्रेजो ने खो दिया होश था।।3।। हिन्दुस्तान की आजादी,चरखे या अनशन का नही नतीजा था। लाखों क्रान्तिकारियो ने इसको, अपना लहू बहा कर सीन्चा था।।4।। उसका साहस अतुलनीय था, अंग्रेजी शासन नारकीय था। अंग्रेजों कौ भारत छोड़ने को, उसने,ही तो मजबूर किया था।।5।। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को, पूरा भारत सदियों याद करेगा, तुम फिर जन्मो इस भारत में, ईश्वर से यही फरियाद करेगा।।6।।

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