कविता बो बचपन का स्कूल
बो बचपन का स्कूल
बो रंग-बिरंगे फूल
बो स्कूल की मिट्टी धूल
अब बहुत याद आता है
बो स्कूल की पीली खिचड़ी
बो स्कूल की टूटी खिड़की
बो दोस्तों के संग कबड्डी
अब बहुत याद आता है
बो बिना छुट्टी के भगाना
बो गुरु जी का मुझे डांटना
फिर दो-तीन दिन स्कूल ना जाना
अब बहुत याद आता है
बो 26 जनवरी की मिठाई
बो दोस्तों के संग मिलकर खाना
फिर सबको गले लगाना
अब बहुत याद आता है
बो स्कूल वाले मेल
बो स्कूल वाले खेल
जाने कहां गया बो दौर
अब बहुत याद आता है
अब हो गए हैं हम बड़े
अपने पैरों पर खड़े
बो बचपन का खो जाना
अब बहुत याद आता है
बो बचपन का स्कूल
बो रंग-बिरंगे फूल
बो स्कूल की मिट्टी धूल
अब बहुत याद आता है
✍️कवि
रवि सिंह सूर्यवंशी (सूर्या)
करनापुर, पुवायां,उत्तर प्रदेश
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