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देखो दिल ना किसी का टूटे-निरेन कुमार सचदेवा।

गुरुकुल अखण्ड भारत
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शीर्षक——देखो दिल ना किसी का टूटे


सामने से गुज़रे तो लड़खड़ाने लगे , हुज़ूर इज़्ज़त का सवाल था ,
वो भी मयखाने की , बहुत वक़्त गुज़ारा था हमने इस मयखाने में , हमने परवाह ना की थी तब ज़माने की ।
आरज़ू तो आज भी है पीने की ,
लेकिन लाचार हैं , मुफ़लिसी है , बेबसी है !

पीने का सिलसिला तब शुरू किया था हमने ,
जब सामना किया था बेवफ़ाई का ,
इश्क़ ओ मोहब्बत में रूसवाई का !
दो रास्ते थे तब हमारे पास , या तो ख़ुदकुशी कर लेते ,
या फिर शराब पीना शुरू कर लेते।

उस ग़म को सहना था बहुत ही मुश्किल , एक नासूर की तरह वो ग़म हमारी ज़िंदगी में हो गया था शामिल !
तब कुछ दोस्तो ने ये हल सुझाया ,
मयखाने की तरफ़ किया रूख , झूठ नहीं बोलेंगे ,
कुछ सुकून मिला , कुछ हद तक कम होने लगा जुदाई का दुःख ।

फिर तो जैसे आदत ही पड़ गयी ,
वो जाम जो वो साक़ी बना कर देती थी , देने लगा था मज़ा ,
वरना तो ज़िंदगी लगने लगी थी एक सज़ा ।
हमारी शोहरत , इज़्ज़त , रुतबा ,
सब नाकाम इश्क़ की भेंट चढ़ गए थे ,
नाकाम इश्क़ ने थे ये सब अहसास लूट लिए और बदले में हमें कभी ना भरने वाले थे बहुत ज़ख़्म दिए ।

इश्क़ नाकामयाब रहा , और इधर शराब पीने का ना कोई हिसाब रहा ।
नौकरी चली गयी , इतने शराबी बन चुके थे कि नौकरी पर जाने के हम नहीं रहे थे क़ाबिल ,
इश्क़ कर ये सब हमें हुआ था हासिल ।
क्या बतायें , अब इतनी मुफ़लिसी है , नहीं पी सकते हैं ,
और पिए बिना अब हम नहीं जी सकते हैं !

कमबख़्त मौत भी दग़ा दे रही है , कैसे मिले अब हमें इस नामुराद ज़िंदगी से निजात , कब और कैसे मिल पाएगी हमें मौत की सौग़ात ?

——-कवि——-
निरेन कुमार सचदेवा।
Love can ruin lives also !!

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