होली विशेषांक
घनाक्षरी छंद
रंग गुलाल चले,चले पिचकारी खूब,
पापड़ और गुझिया का न्यारा पर्व आया है।
भैया से भाभी बोलीं हमहूं लगाइब रंग।
होली का पावन सुहावन रंग भाया है।
"दिनकर" खेलें पिचकारी से रंग रोज,
पावन लुभावन सुहावन रंग छाया है।
ढोल नगाड़ा बाजे डीजे और ताली बाजे।
फागुन का महिना निराला रंग लाया है।।
रचनाकार✍🏽
पंकज सिंह दिनकर(अर्कवंशी)
लखनऊ उत्तर प्रदेश
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