❤महुआरी
लरचे डारि लता कतहूँ,अरु फलबिंदु कतौ,मोतियन सन झलकें ,
छिछनाई गिरे महुआ कतहूँ, तरु महुआरी नयन रिझावें पुलकें।
उपवन माहि जे बहे पुरवाई, हिलें तरुपात जस नारि की अलकें,
कजरारे नयन ठगे से रहें, ठिठके, ठहरें काम कमान सी पलकें।
कँगना कलाई रहें कनके ,गोड़ गोड़हरा, कडा़ छडा संग ठनकें ,
नकबेसर रहि रहि ओंठवा चूमे,अरु झमझम झूमे झमके झुमके।
टड्डा,भुजबंध,मंग टीका चमके, हिय हुमेल हँसुली हँसि फुदकें ,
झरिझरि फूलि महावरि चूमे,रसि आनन्द उड़ेरि मधुर रस छिरकें।
कामिनी शयनारि की आस करें ,मन माहि रहे जस कुहकुन कुलकें, विरहिन मन पीर कहे कासो,अँचरा मुखि डारि,भरि अँसुवन सिसकें।
बैरिन भई निंदिया उडगन ताके, कब अइहँ पियवा हियवा हुटकें,
झुंझके झुंझनाई झुझुक मन झिड़के,पुनि पाँति मिले विहँसें थिरकें ।।
✍️
चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"
0 Comments