ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

प्रणय उत्संग,उत्सविक हावभाव

प्रणय उत्संग,उत्सविक हावभाव
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जीवन पथ अभिलाष प्रभा,
आनंदिका स्पर्श अनुभूति ।
पर वश श्रृंगार विहार,
चाल ढाल सम अरुंधति ।
मधुर मृदुल स्वर लहरियां,
उष्ण विराम शीतल छांव ।
प्रणय उत्संग,उत्सविक हावभाव ।।

आचार विचार व्यवहारिकी,
स्व पालन नैतिक संहिता ।
अवांछित संकीर्णता पटाक्षेप,
सकारात्मक सोच अंकिता ।
रज रज मोहक सुरभि,
आकर्षण सरित सौंदर्य बहाव।
प्रणय उत्संग,उत्सविक हावभाव ।।

उर उत्कंठा मिलन चाह,
प्रति पल अनूप प्रतीक्षा ।
आभा बिंब कदम आहट,
स्मृत वेदी झलक अभिरक्षा ।
उत्तर उत्सुक प्रश्न माला खोज,
शंका रिक्ति समाधान भराव ।
प्रणव उत्संग,उत्सविक हावभाव ।।

सम्मुख बेला एकटक निहार,
शब्द अभिरूप संकेत भाषा ।
अति चाहना स्वागत सत्कार,
अपनत्व नव संबंध परिभाषा ।
संसर्ग अभिलाष अंतिमा,
सृजन संग खुशियां जड़ाव ।
प्रणय उत्संग,उत्सविक हावभाव ।।

महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)

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