समझ या बहाना
हमें अपनी उम्र के साथ कई चीजों की समझ होती जाती है। जब हम 5 वर्ष के नादान बालाक होते हैं तो हमें लगता है कि बालवीर असली में होता है, टूटते तारे हमारी इच्छा पूरी कर देते हैं ,मेरी मम्मी मुझे एक बाबा से माँगकर लाई थी, झोलीवाले बाबा बच्चों को सच में झोले में बन्द करने के बाद उन्हें खा डालते हैं। ट्रेन पर बैठने के बाद पेड़ चलने लगते हैं .. इत्यादि।जब हम समय के साथ थोड़ा सा बड़े होते जाते हैं , तब हमारे अंदर के ये सारे भ्रम टूटते जाते हैं। और हमारे अंदर एक समझ उत्पन्न होती है। यही समझ हमारे अंदर धीरे-धीरे एक बहाने का रुप ले लेती है।अब आप कहेंगे कि मैं यह किस आधार पर लिख रहा हूं।मैं यहाँ पर जिस समझ की बात कर रहा हूँ। शायद आप वहाँ तक पहुंचे नहीं हैं। हमारा शरीर बड़ा आलसी है। इसके आलस्य मे हमारा मस्तिष्क भी साथ देता है। मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ ," राकेश नाम का दसवीं कक्षा का विद्यार्थी, जिसे अभी तक पढ़ना बहुत प्रिय था। वह समझता था कि पढ़ने से मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करूंगा। कल परसों उसने इंटरनेट पर भारतीय शिक्षा पद्धति के ऊपर एक आलेख पढ़ा। जिसमें बताया गया था कि किस प्रकार शिक्षा पद्धति बच्चों के भविष्य को बर्बाद करती है। जिसके अंदर कोई टैलेंट है। उसे पढ़ने की क्या जरूरत है?"
परसों से राकेश ने अपना बस्ता नहीं खोला है। जब भी उसका पढने का मन होता है। तभी उसके मन में ये समझ रूपी बहाना आ जाता है," पढ़ाई से मेरा क्या फायदा होगा । मुझे तो एक गायक बनना है। यहाँ शायद यह उसकी समझ है। परंतु यह समझ एक बहाने के रूप में उसके दिमाग, में बैठ गई। कभी-कभी उसका मन करता है कि मेरे मम्मी - पापा पैसे लगा रहे हैं। मुझे पढ़ना चाहिए। गायक तो जवानी में बनूँगा । अभी मुझे पढ़ना चाहिए।"
उसका शरीर थोड़ा सा आलस चाहता है। मस्तिष्क उसकी मदद करता है और फिर वो सोचता है, "जब इससे मेरा कुछ होगा ही नहीं तो मैं क्यों पढूं?"
हमारे मन में जब कोई नया ज्ञान इंटरनेट गुरुओं से प्राप्त हो आता है तो हम उसे बहाने के रूप में ही प्रयोग करते हैं। हमें ऐसा मालूम ही नहीं पडता है कि हम खुद को बहाना दे रहे हैं। हमें लगता है कि हम बेहतर कार्य कर रहे हैं। चूंकि हमें अपने काम को न करने की भी खुशी होती है,अतः खुशी दोगुनी हो जाती है। कभी- कभी कुछ युवाओं का मदिरापान करने का मन करता है। चूँकि वो एक बेहतर घराने से होते हैं तो वो ये कार्य नहीं कर सकते । तभी इंटरनेट पर वो यो पढ़ते हैं कि मदिरा का कुछ मात्रा में उपयोग करने से हमारे शरीर को लाभ होते हैं। दुर्भाग्यवश यह नहीं पढ़ने कि मदिरा न पीने से हमें कोई हानि भी नहीं होती है। इसी ज्ञान को आधार मानकर वह शरीर स्वस्थ करने के इरादे से कुछ मात्रा में मदिरापान करते हैं। दवाई की मात्रा। उन्हें ये *समझ* है कि मदिरा को पीने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। दूसरी तरफ उनका एक मन ये पहले से ही कह रहा है कि आधुनिक स्टाइल में मदिरा पीकर के तो देखो । उन्हें इस मन की आवाज बिल्कुल सुनाई नहीं देती। वो केवल स्वास्थ्य हेतु मदिरा पान करते हैं। अपने अनुसार वो एक बेहतर कार्य कर रहे हैं।
बाद में उनका क्या हाल होता है? ये आप जानते ही हैं। ऐसे ही कई समझ रुपी बहाने आप बनाते हैं। परंतु असलियत में आप जान नहीं पाते कि आप बहाना बना रहे हैं या एक ज्ञानवर्द्धक काम कर रहे हैं। आपको वो सदैव एक बेहतर समझ ही लगती है। मेरे पहले उदाहरण में आपको भी विद्यार्थी की समझ ही दिखाई पड़ी होगी। बहाने तो उसमें कहीं से भी नजर नहीं आते हैं। इसीलिए आप अपनी नजरों को थोड़ा-सा पैना कीजिए और हर कार्य करते हुए यही सोचिए।
क्या है ये?
समझ या बहाना ।
बालकवि स्वप्निल शर्मा
हरदोई
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