चश्मा
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क्यो लग गयी नजर,
आखिर चश्मा ही तो था।
बेहतर देखने का प्रयास,
सही से समझने की आस,
नजर नजर को पढ़ सके,
आखिर चश्मा ही तो था।
आखिर आंखे है अनमोल,
समझती सब को,
घूमती गोल गोल,
ले लिया थोड़ा महंगा,
आखिर चश्मा ही तो था।
कंचन का कोई मोल कहाँ,
जहां भी गर्व करता यहां,
अनमोल आंखों के लिए,
मैंने सोचा लिया थोड़ा,
आखिर चश्मा ही तो था।
थोड़ा सा खुश हो जाना भी,
नसीब में कहां,
गैर तो ठीक,
अपने नजर लगाते यहां,
नजर के बारे में सोच क्या लिया,
घर मे कोहराम मच गया,
आखिर कौन सी बड़ी बात,
चश्मा ही तो था।
चश्मा ही तो था।
✍️
कंचन मिश्रा
शाहजहाँपुर, उ. प्र.
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