सफ़र जिन्दगी का...
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जिंदगी में हमेशा,
मुस्कुराने के बहाने न होते |
सफर में हमेशा,
मनमुताबिक अफसाने न होते |
पहले का लिखा पढ़ा,
और कॉपी अब जँच रही,
यदि ऐसा न होता तो,
कंचन होकर भी,
चमकने के लिए,
यू ही इंतज़ार न होते।
परीक्षा ली जा रही,
हर पल,
अपनो में, अपनो के द्वारा,
न तो अनमोल आंसू,
यू ही बहाए न होते।
अभिभावक ही,
हाथ खींचे हुए रहते |
जानबूझकर ,
मझधार में छोड़े हुए रहते |
लेकिन खेवैया तो ऊपर बैठा,
वह वक्त वक्त पर,
किनारे लगाए हुए रहते।
✍️
कंचन मिश्रा
शाजहाँपुर
उ. प्र.
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