वो बाबू, मैं अंगूठा टेक
वो बाबू, मैं अंगूठा टेक,
कागज़ों में उलझा ये मेरा भाग्य लेख।
हाथ में बस मेहनत का जोर है,
पर तेरी कलम का करिश्मा बड़ा शोर है।
तू लिखता है, मैं बस पढ़ता हूँ नहीं,
तू हंसता है, मैं समझता भी नहीं।
तेरी टेबल पर फ़ाइलों के ढेर लगे,
और मेरी दुनिया में फसल के पेड़ खड़े।
तेरे पास किताबों का ज्ञान है बेशुमार,
मेरे पास मिट्टी की महक और काम का भार।
तू सवाल पूछे, मैं जवाब दूं कैसे,
क्योंकि मैं तो बस अपनी मेहनत को जानूं ऐसे।
तेरी कलम की स्याही से बनते हैं नियम,
मेरे पसीने से चलता है मेरा जनम।
तू बाबू, तूने पढ़ा है सब,
मैं अंगूठा टेक, पर दिल में सच्चा हूँ अब।
कभी आकर देख मेरी दुनिया भी,
जहाँ ज़मीन से जुड़ी है हर चीज़ की बुनियाद।
तेरे दस्तखत का मान मैं समझता हूँ,
पर अपनी मेहनत का अभिमान मैं रखता हूँ।
अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी
पूरनपुर पीलीभीत उत्तर प्रदेश
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