हाले दिल

हाले दिल किससे कहें,  
ये दिल तो बस खामोश है।  
हर धड़कन में एक सदा,  
पर जुबां से कुछ न कहने का जोश हैं ।  

दिल में है बसी कहानियाँ,  
पर जुबां को कोई राह नहीं।  
आँखों में उमड़ते हैं जज़्बात,  
पर लफ्ज़ों में वो बात नहीं।  

ये दिल चाहता है कह दे सब,  
जो भी इसमें छिपा हुआ।  
पर हर बार रुक जाता है,  
जैसे लफ्ज़ों का रास्ता भी बंद हुआ।  

कभी खुशी, कभी ग़म का आलम,  
हर एक पल में नए रंग समाए हैं।  
पर कहने की जब बात आती,  
दिल के हालात को लफ्ज़ भी थम जाते हैं।  

हाले दिल है एक राज़,  
जो किसी से बयाँ नहीं हो पाता हैं | 
पर शायद किसी की आँखों में,  
ये चुप्पी भी, समझ में आता हैं || 

तो अब किससे कहें हाले दिल,  
जब जुबां और दिल का ये हाल है,  
शायद वक्त ही होगा वो साथी,  
जो हर राज़ से खुद वाकिफ़हाल है।

अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी 
पूरनपुर,पीलीभीत (उoप्रo)


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