काश उनका दर्द बाँट सकता,
जैसे गणित हल करता है समीकरण,
हर आँसू के पीछे छुपी ऊर्जा को,
जैसे समझता है विज्ञान का कण।
दुख को तोलता तराजू में,
जैसे मापा जाता है द्रव्यमान,
और बाँट देता उस भार को,
न्यूटन के नियमों से समान।
भावनाओं के वेक्टर होते,
दिशा और बल दोनों मापते,
उनके दुख की रफ्तार कम कर,
समरूपता से जीवन को नापते।
काश उनके मन के इलेक्ट्रॉनों को,
मैं जोड़ पाता अपने बंध से,
ताप के सिद्धांतों से हर बार,
ठंडक देता उस घाव को बंधे से।
उनके दुख की आवृत्ति सुनता,
ध्वनि तरंगों के स्पंदन में,
और अनुनाद के विज्ञान से,
संगीत बजता उस कंपन में।
काश दर्द को अणुओं में तोड़ पाता,
जैसे रसायन की क्रिया हो कोई,
हर बंध टूटे, हर दुख मिटे,
बन जाए एक नई खुशी की रोशनी।
अगर मन की जटिलता समझ पाता,
जैसे डीएनए की संरचना है,
तो बदल देता मैं हर कष्ट को,
जीवन के नए अध्याय में।
काश उनका दर्द बाँट सकता,
जैसे विज्ञान के सूत्रों से हल करता सवाल,
हर दुख का हल होता समीकरण में,
और मिलता सभी को सुख का हाल।
अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी
पूरनपुर पीलीभीत उoप्रo
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