मैं तुम्हें मिलूंगी
मैं तुम्हें मिलूंगी
हाँ जरूर मिलूंगी
कब, कहाँ, कैसे
किस तरह मिलूंगी
इसका ज़िक्र मैं अभी
किस तरह करुँगी....
पर मैं तुम्हें मिलूंगी
हाँ जरूर मिलूंगी.
आसमानी आकाश के नीचे
घने काले बादलों के पीछे
टिमटिमाते तारों के मध्य में
पूर्ण चाँद के सानिध्य में
मैं तुम्हें मिलूंगी....
हाँ जरूर मिलूंगी.
पर्वतों पहाड़ों के अर्श में
वर्षा की बूंदो के स्पर्श में
वसुंधरा के खुशहाल परिवेश में
स्नेह के कोमल आगोश में
मैं तुम्हें मिलूंगी...
हाँ जरूर मिलूंगी.
रात की घनघोर नीरवता में
प्रातः कलरव करती मधुरता में
कलियों की खिलती कोमलता में
अरुणिमा की प्रथम शीतलता में
मैं तुम्हें मिलूंगी...
हाँ जरूर मिलूंगी।।
मैं और तुम
मैं और तुम
नदी के दो किनारे
जो चलते साथ-साथ
पर मिल नहीं सकते.
मैं और तुम
समानांतर दो रेखाएं
जो बढ़ते साथ -साथ
पर मिल नहीं सकते.
मैं और तुम
मेघा तथा अम्बर
जो दिखते साथ -साथ
पर मिल नहीं सकते.
मैं और तुम
अवनि और आकाश
क्षितिज में शायद
मिलते हों काश.
अभिलाषा लाल
वाराणसी. उ. प्र.