कैसी बेबसी है,
जो अपने हैं,
उनका अपनापन दिखता ही नही,
गम देने के सिवा,
उनको दूसरा काम रहता ही नही,
जिंदगी कैसे,
मझधार में फंसी है।
कैसी बेबसी है...................
सारे रिश्ते,
औपचारिकताओं की भेंट,
चढ़ रहे,
बोलने में एक से बढ़कर एक,
दिख रहे,
लेकिन निभाने में,
हमेशा जगह, खाली मिली है।
कैसी बेबसी है...............
जो गैर है,
वह परेशान से रहते है,
बिना डोर के भी,
बंधे से रहते है,
उनमें अपना बनने की,
होड़ सी मची है।
कैसी बेबसी है.................
अपने, अपनेपन को तरस रहे,
गैर, अपनापन दिखा रहे,
इस अपने और अपनेपन,
की उधेड़बुन में ,
मेरी नैया चल रही है।
कैसी बेबसी है..............
✍️
कंचन मिश्रा