ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

तुम्हारा जवाब नहीं-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई



शीर्षक:-तुम्हारा जवाब नहीं।

तुम देखते गए, 
सम्मान से, प्यार से,
इकरार से,जॉ निसार से। 
अनिमेष आंखों से, 
कुछ ढूँढ रहे थे, या...! 
डूबना चाह रहे थे? 
लालटेन की धीमी, 
लौ में तुमने देखा, 
एक हसीन प्यार 
की अलौकिक रेखा, 
तुम देखते जा रहे थे, 
अनमने होते जा रहे थे, 
चुपके-चुपके छुपकर, 
देख लेते रुककर ।
तुम्हारा जवाब नहीं, 
तेरे सिवा कोई ख्याल नहीं। 
प्रभात पहली किरण सी,
सांझ सुहानी प्रहर सी, 
भोली मनोहर सुशील लगी, 
"कोई तुमको अतिसुन्दर लगी।"
बाद बताया तुमने उससे, 
जब दिल लगे थे मिलने,
कभी नहीं जाना जिन्दगी से, 
मांगता हूँ तुम्हें बंदगी से,
मिन्नत करते थे चांदनी से ।
तुम नासमझ हो, मासूम हो,
पवित्र मस्त दुनिया में,अफलातून हो ।
इशारे समझ जाती अल्फाज नहीं, 
तुलना करूँ क्या, तेरा कोई साज नहीं। 
तुम रूह बन गई, खूबसूरत एहसास, 
मगन रहता प्रेम भी, रहती जब पास। 
कुछ लिखता पर शब्द नहीं तैयार हो रहे 
तुम्ही से दिन-रात और मौसम बहार हो रहे।
तुम, तुम हो तुमसा कोई हो ही नहीं सकता, 
दिल तेरे सिवा किसी के लिए धड़क नहीं सकता।। 

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

Post a Comment

0 Comments