ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

सूकून की तलाश है ✍️ प्रीति दास प्रधान

सूकून की तलाश है।
थक गए हैं सफर में ,
अकेले चलते चलते,
 अब रहबर की तलाश है।
पांव के  बेहिसाब ज़ख्म भर दे कोई ।
उन हाथों की तलाश है ।
बहुत भारी है अंतस ,
रोकर हल्के हो जाते ,
दर्पण से साफ 
ऐसे दिल की तलाश है।
बोझ बड़ा उठा लिया ताउम्र,
टिका सकें दो पल,
सर को अपने 
ऐसे मजबूत कांधे की 
तलाश है।
 भटक रहे  समंदर सी
जिंदगी की ऊंची नीची लहरों में
साहिल पर पहुंचा दे
ऐसे कश्ती की तलाश है।
बह न सके जो अश्क ,
उन्हें  मांग ले हमसे कोई 
ऐसे फ़रिश्ते  की तलाश है।पर.....
तलाश तो तलाश होती है ,
ये न कभी  मुकम्मल  होती है।
इस पार न मिला गर,
उस पार मिल जाए ....
बस इसी  उम्मीद के साथ
फिर इसी सूकून की तलाश है।
           ✍️ प्रीति दास प्रधान 

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