भारत के संवैधानिक विकास के इतिहास को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं :
1. ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के अंतर्गत
2. ब्रिटेन की सरकार के शासन के अंतर्गत
जिस समय तक 1858 ई0 ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन रहा, ब्रिटेन के संसद विभिन्न अवसरों पर विभिन्न कानून अथवा आदेश पत्र (Company Charter's) जारी करके कंपनी के शासन पर नियंत्रण रखती रही और जब उसने स्वयं भारत के शासन को अपने हाथों में लिया तब भी उसने भारत के शासन के लिए विभिन्न कानून (Acts) बनाएं उन सभी आदेश पत्रों और कानूनों को हम भारत के संवैधानिक विकास में सम्मिलित करते हैं
▶️1600 ई0 का राज लेख (चार्टर)
भारत का संवैधानिक इतिहास ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के साथ प्रारंभ होता है| यह कार्य राज लेख के माध्यम से किया गया जिसे सन 1600 ई0 का राज लेख कहा गया| इस राज लेख के माध्यम से महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 31 दिसंबर 1600 ई0 को 'ईस्ट इंडिया कंपनी' की स्थापना कर उसे पूर्वी देशों में 15 वर्षों तक व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया स्थापना के समय कंपनी की कुल पूंजी 30133 पोंड तथा उसमें कुल 217 भागीदार थे | इस कंपनी का सारा प्रशासन एक परिषद को सौंपा गया जिसके शिखर पर गवर्नर एवं उप गवर्नर और 24 अन्य सदस्य थे| इसे गवर्नर और उसकी परिषद की संज्ञा दिया गया | ध्यातव्य है कि जब बाद में इस परिषद को कोर्ट ऑफ डायरेक्टर व निदेशक मंडल के नाम से अभिहित किया गया|
▶️ 1726 का राज लेख
यशराज लेक द्वारा कोलकाता, मुंबई तथा मद्रास प्रेसीडेंसी के राज्यपालों तथा उनकी परिषद को 'विधि बनाने की शक्ति' प्रदान की गई इससे पहले यह शक्ति इंग्लैंड स्थित निदेशक मंडल में निहित थी |
▶️ 1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट
तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री 'लॉर्ड नॉर्थ' द्वारा गठित गुप्त समिति (Secret Committee) की सिफारिश पर (BPSC 94) पारित एक्ट को '1773 का रेगुलेटिंग एक्ट' संज्ञा दी गई | इसका मुख्य उद्देश कंपनी के कार्यों को भारत तथा ब्रिटेन दोनों स्थानों पर नियंत्रित करना तथा कंपनी में व्याप्त दोषों को समाप्त करना था | कंपनी की गतिविधियों के दो मुख्य केंद्र थे :-
1. इंग्लैंड
2. भारत
कंपनी के संपूर्ण प्रशासन के सुपरविजन हेतु इंग्लैंड में 2 संस्थाएं थी :-
1. निदेशक मंडल (Court of Directors)
2.स्वत्वधारी मंडल (Court of Propreitors)
यह दोनों संस्थाएं गृह सरकार की अंग थी |पूर्ववर्ती संस्था इंग्लैंड में कंपनी की कार्यपालिका थी | इसमें 24 निर्देशक होते थे इसका चुनाव प्रतिवर्ष स्वत्वधारी मंडल द्वारा किया जाता था | निदेशक मंडल प्रतिवर्ष सदस्यों मैं से एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष का चुनाव करता था | अध्यक्ष कंपनी का मुख्य अधिकारी होता था |
⚫️ अब इस एक्ट के तहत निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर) की कार्यविधि 1 वर्ष के स्थान पर 4 वर्ष का कर दिया गया | साथ ही यह उप बंधित किया कि कोर्ट और डायरेक्टर की कुल सदस्य संख्या (24) के एक चौथाई (1/4) सदस्य प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण करेंगे |पुनश्च कंपनी के निदेशक चुनने का अधिकार उन्हीं लोगों को होगा, जो कम से कम 1 वर्ष पूर्व कंपनी में 1000 पौंड के शेयर धारक होंगे | ध्यातव्य है कि इस एक्ट के पहले कंपनी के निदेशक मंडल का चुनाव कंपनी के 500 पाउंड के अंश धारियों द्वारा होता था |
⚫️ भारतीय परिपेक्ष्य में कंपनी प्रशासन में बंगाल के फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के प्रशासक को इस एक्ट के माध्यम से अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बना दिया गया अर्थात बंगाल (कोलकाता), मुंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी ओ जो एक दूसरे से स्वतंत्र थी | इस अधिनियम द्वारा बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन करके बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसीडेंसी ओं का गवर्नर जनरल बना दिया गया | शासन की समस्त सैनिक तथा सिविल शक्तियों को गवर्नर जनरल तथा उसके चार सदस्य परिषद को सौंप दिया गया और निर्णय में बहुमत हेतु गवर्नर जनरल को निर्णायक मत देने का अधिकार प्रदान किया गया | वारेन हेस्टिंग को प्रथम गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया | कार्यकारिणी परिषद के अन्य चार सदस्य थे :-
1. फिलिपफ्रांसिस,
2. क्लियरिंग,
3. मानस एवं
4. वारवेल
⚫️ अधिनियम के अधीन 1774 ई0 में कोलकाता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई | सर एलिजाह इम्पे को मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य, चेंबर्स लेमिंस्टर एवं हायड को न्यायाधीश बनाया गया | यह एक अभिलेख न्यायालय था, इसके विरुद्ध अपील प्रीवी कौंसिल में होती थी |
⚫️इस अधिनियम द्वारा कंपनी के कर्मचारियों को बिना लाइसेंस प्राप्त किया व्यापार को प्रतिबंधित कर दिया गया |
0 Comments