ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

अरावली की कंदराओं में, धर्म आस्था की पुण्य धारा-महेन्द्र कुमार

(तीर्थराज लोहार्गल में बाबा मालकेतु की चौबीस कोसीय परिक्रमा के वंदन में कुछ पंक्तियां सादर निवेदित हैं:_)

अरावली की कंदराओं में, धर्म आस्था की पुण्य धारा

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शेखावाटी हरिद्वार लोहार्गल,
आध्यात्म आकर्षण अद्भुत ।
पाप मोक्ष लक्षित जन मानस,
परम उपासना भाव अंतर स्तुत ।
संस्कार परंपराएं अभिवंदन,
उर ओज सनातन धर्म जयकारा ।
अरावली की कंदराओं में, धर्म आस्था की पुण्य धारा ।।

रंग बिरंगी संस्कृति वेशभूषा,
ग्रामीण शहरी जीवन मिश्रण ।
नर नारी वरिष्ठ युवा प्रबुद्ध जन,
हृदय आनंद अथाह संचरण ।
लोक गीत भजन नृत्यों संग,
झूम रहा जन सैलाब सारा ।
अरावली की कंदराओं में, धर्म आस्था की पुण्य धारा ।।

निखर बिखर रही खुशियां,
मिट रहा दुःख कष्ट संताप ।
तीर्थ यात्रा भक्ति आराधना ,
धुल रहे मनुज संपूर्ण पाप ।
अनुपम सामाजिक समरसता ,
परिक्रमार्थी सेवा भाव प्यारा ।
अरावली की कंदराओं में, धर्म आस्था की पुण्य धारा ।।

गोगानवमी पुनीत पावन बेला ,
चौबीस कोसीय परिक्रमा आरंभ ।
समाज शासन प्रशासन पुलिस,
सहयोग शांति अनूप प्रबंध ।
सर्व धर्म समभाव छटा,
दर्शित असीम स्नेह प्रेम भाईचारा ।
अरावली की कंदराओं में, धर्म आस्था की पुण्य धारा ।।

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महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
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