🚩वैदिक विचार व कर्म
ॐ नाम निज प्रणव प्रभू का,और नाम सब गुण अनुशंशी।
ब्रह्मा विष्णु महेश एक हैं,कर्ता,धर्ता,हर्ता त्रिभुवन प्रसंशी।।
दृष्टि पलक का उठना गिरना, दृश्य अदृश्य का दृग संयोजन।
अरणी में है अग्नि अगोचर, गोचर होता पा कर्म- नियोजन।।
वह निराकार अनुभूति परक है,अजर,अमर है औरअजन्मा।
कल्प भेद से सृष्टि का सर्जक,वही प्रहर्ता स्वाम्भुव जन्मा।।
अणु के अन्दर,अणु के बाहर,व्याप्त वही है अति सुक्ष्म,विभ्राट।
अखिलसृष्टि साम्राज्य है उसका,सर्वेश्वर वहअविकलसम्राट।।
राम कृष्ण अप्रतिम दिव्यात्म थे,उस निराकार के रचना साकार।
कर्म विपाक से जीव अक्षर यह,है बनके शरीरी लेता आकार ।।
ईश्वर जीव प्रकृति अविनाशी, जीव है मोहरा प्रकृति विसात।
कर्म विपाकी क्रीडा करवाता,कर लेता पुनि आत्म- सात ।।
🚩वै.वि.व कर्म ..२
आदि सृष्टि अमैथुनी सृष्टि है,सप्त ऋषि हैं इसके आदि प्रधान।
वंश वृद्धि कर विस्तार को करता,देकर रति-काम काउपादान।।
प्रजा- वृद्धि से बने प्रजापति, लक्ष्य रहा जन हित संयोजन।
ऋषियों से वे किये निवेदन, करें आप अधि कर्म नियोजन।।
ऋग् ,यजुः व साम,अथर्वण,हैं सृष्टि व्यवस्था के विधि विधान।
अग्नि, वायु ,आदित्य,अंगिरा,के अंतस में होता प्रति निधान।।
वेद चार हैं वेदत्रयी भी कहते,ज्ञान कर्म उपासना इसके विज्ञान।
स्वतःप्रमाण हैं आदि ग्रंथ ये,अपौरूषेय वेद हैं वचन हैं ज्ञान।।
श्रुति-श्रोता जिसके कर्ण अनन्त,शब्द सप्त लक्ष्य,अड़सठ सहस्त्र।
अनुप्राणित करते हैं वेदाक्षर, मंत्र चार सौ और बीस सहस्त्र।।
ऋग्वेद है वृहद औ'अनुपम, दस मण्डल में दस सौ अट्ठाइस सूक्त।
दस हजार पाँच सौ बावन ऋचाचें,सुवर्णित हैं जिसमें मंत्रतथोक्त।।
यजुर्वेद में हैं चालिस अध्याय,मंत्र भरा है उन्नीस सौ छिहत्तर।
सामवेद तो मधुर गान वेद है,धर्ता मंत्र अट्ठारह सौ पचहत्तर।।
बीसकाण्ड धारित अथर्ववेद है,परम् सूक्त हैं सातसौसाठ महान।
पाँचहजारनौसौ,सत्तहत्तरमंत्र हैं,छःहजारऋचायें करते कल्याण।।
ऋषि,मुनिगण हैं इसके व्याख्याता,यह संग्रह ब्राह्मणग्रंथ कहाता।
शिक्षा,कल्प,निरूक्त,व्याकरण,ज्योतिष,छंद,छःवेदांग कहाता।।
प्रामाणिक तो उपनिषद् हैं ग्यारह,ईश केन,कंठ प्रश्न और मुण्डक।
ऐतरेय,माण्डूक्य,तैत्तिरीय एवं छांदोग्य,श्वेताश्वत्तर,बृहदारण्यक।।
.jpg)

0 Comments