✍️वेद त्रयी
विश्व में शब्द प्रयोग की तीन ही शैलियाँ होती हैं- जो
1ःगद्य 2ःपद्य 3ःगान रूप से प्रसिद्ध हैं।
पद्य में अक्षर संख्या तथा पाद एवं विराम का निश्चित नियम रहता है। अतः निश्चित अक्षर संख्या और पाद एवं विराम वाले वेद-मंत्रों की संज्ञा "ऋक्" है। जिन मंत्रों में
छंद के नियमानुसार अक्षर संख्या और पाद एवं विराम, ऋषि दृष्ट नहीं हैं, वे गद्यात्मक मंत्र "यजुः"कहलाते हैं और जितने मंत्र गानात्मक हैं वे मंत्र "साम" कहलाते हैं। इन तीन प्रकार की शब्द -प्रकाशन शैलियों के आधार पर ही शास्त्र एवं लोक में वेद के लिये "त्रयी"शब्द का भी व्यवहार किया जाता है।"त्रयी"शब्द से ऐसा नहीं समझना चाहिये कि वेदों की संख्या ही तीन है (वह अलग विषय है और यहाँ अभिष्ट नहीं है), क्योंकि "त्रयी"शब्द का व्यवहार शब्द -प्रयोग की शैली के आधार पर है। कहा गया है कि -
पादेनार्थेन चोपेता वृत्तबद्धा मन्त्रा ऋचः।
गीति रूपा मन्त्राःसामानि।
वृत्तगीति वर्जितत्वेन प्रश्लिष्ट पठिता मन्त्रा यजूंषि।
ऋषि, छंद और देवता
ऋषि -यह वह व्यक्ति है, जिसने मन्त्र के स्वरुप को यथार्थ रुप में समझा है अर्थात् साक्षात् दर्शन या साक्षात्कार किया है।जिन व्यक्तियों ने किसी मन्त्र का एक विशेष प्रकार के प्रयोग तथा साक्षात्कार से सफलता प्राप्त की है, वे भी उस मन्त्र के ऋषि माने गये हैं।
छन्द- अक्षर, पाद, विराम की विशेषता के आधार पर दी गयी जो संज्ञा है, वही छन्द है।
देवता-मन्त्रों के अक्षर किसी पदार्थ या व्यक्ति के सम्बन्ध में कुछ कहते हैं। यह कथन जिस व्यक्ति या पदार्थ के निमित्त होता है, वही उस मन्त्र का देवता होता है
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🚩वेद का संदेश
ॐन मृत्युःआसीत् अमृतं न तहिं न रात्र्याःअह्नःआसीत् प्रकेतः। आनीत् अवातं स्वधया तत् एकम् तस्मात् ह अन्यत् न परःकिंचन आस।। ऋग्वेद १०.१२९.२
न मृत्यु थी, न अमरत्व था, ना ही कोई तत्व था,
न रात्रि थी,न दिवस था,ना काल ही का चक्र था।
अवातम् समर्थ एकम्, शून्य धर, कः देव था?
नाद रूप,अघोष रूप,शेष रूप,एक वही अशेष था।।
*अकिंचन *गोरखपुर।
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चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"
गोरखपुर।
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