ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

बैठो मत यूं मारे मन-रचनाकार कमलेश कुमार कारुष

✍बैठो मत यूं मारे मन✍

यदि आगे कुछ करना चहते,
बैठो मत यूं मारे मन।
यदि सफल होना है आगे-आगे,
मत बैठो कर निष्क्रिय तन।।
यदि आगे कुछ •••••••••••

जो चले अनवरत सद पथ पर,
वह मंजिल को पाता है।
निर्मल होता बहता पानी,
पर रुका हुआ सड़ जाता है।।
चलने वास्ते रखो मिला पग,
कोई पाव पसारे जनि बैठो जन।
यदि आगे कुछ करना चहते,
बैठो मत यूं मारे मन।।
यदि आगे कुछ ••••••••••••

दौड़न वाला खरहा तेजी,
हुआ पराजित दो पग चलकर।
पर धीरे-धीरे गति चलता कछुआ,
गया मार बजी अति चलकर।।
कदम से कदम मिलाकर चलना,
दूर ना होना एक भी छन।
यदि आगे कुछ करना चहते,
बैठो मत यूं मारे मन।।
यदि आगे कुछ •••••••••••

देखो धरती चलती रहती,
रातो रात चलत है चंदा।
रश्मि विखरने आते सूरज,
परतें चीर गगन के फंदा।।
करे प्रसारित महक पवन अति,
है करना कारुष तुझको रन।
यदि आगे कुछ करना चहते,
बैठो मत यूं मारे मन।।
यदि आगे कुछ •••••••••••

रचनाकार 
कमलेश कुमार कारुष 

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