कविता। चाहत गुलाब की....
काश कोई ऐसा मिले जिसे चाहत
गुलाब की हो "माली के बागवान "की न
जो बिना किसी आभूषण के भी मुख
को चांद और लबों को गुलाब की पंखुड़ियां समझे ।
जो बिना कहे गम और खुशी दोनो समझे
जो उसकी नादानियों में अपनी खुशी ढूंढे!
काश कोई ऐसा मिले जिसे चाहत गुलाब की हो
"माली के बागवान" की न ।
जो लड़ाई में मोहब्बत के बहाने ढूंढे
जो हर पल अपनी चाहत को ढूंढे।
जो हीरो का हार न सही गुलाब का
फूल ही प्यार से दे ।
जो दर्द में सहार बने और हर खुशी की वजह बने
जो "पार्वती के शिव " और "राधा के श्याम" जैसे हो
काश कोई ऐसा मिले जिसे चाहत गुलाब
की हो "माली के बागवान "की न।
अनुप्रिया कुमारी..(.झा)

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