ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

प्राकृतिक सौंदर्य और मानव - श्रवण कुमार यादव , निजामाबाद, आजमगढ़

प्राकृतिक सौंदर्य और मानव

   विधा :- कविता

हरितिमा चहुंओर धरा पर दृश्यमान 
अंतर्मन में क्यों नहीं भर दे उफान
एक दिन मुंडेर पर मैं था खड़ा 
मसि करने लगी प्रकृति सौंदर्य गान।

विटप आम्र निंब लिपटस पीपल वट 
बड़े गंभीरता से देखने मुझको लगे
मेरी दृष्टि अपलक उन्हें देखने लगी
विटप गंभीर शांत व निश्छलता से
अपलक निहारते हुए से दिखने लगे 
वृक्ष स्वसौंदर्य अंतर्मन को हरने लगे।

धरा मृदुल वैभव संजोए सदा रहती
समय पर मृदुल वैभव हमें दे जाती 
परिसर में गौवें घास को चरती रही
गौवों को चरते देख पीछे पीछे वक 
मंडराने लगे आहार की तालाश में
दूर तलक वक घास में फिरने लगे
अगला दृश्य अद्भुत सा लगा जब।
 
गौवों के कर्णपास आ कहने लगा
न संबंध न कोई पहचान दोनो में
अलग अलग है जाति उनकी मगर
उनके भाव में एकरूपता आश्चर्य
करने वाली दोनो में दिखने लगी
कलगी संवार कान खुजलाने लगे।

प्रकृति के जीव भी कुछ बड़े अद्भुत 
भिन्नता है मगर घनिष्ट संबंध रखते हैं
प्रकृति की एक अद्भुत रचना मानव
जो सृष्टि में बुद्धिमत का गौरव पाया
जीवों की अवहेलना हर पल करता है।

इन जीवों के प्रति हिंसा का व्यवहार
मानव को महापाप समझना चाहिए
मानव सी संवेदना जीवों में भी होती है
जीवों की रक्षा और अहिंसा का भाव
हर मानव के व्यवहार में होना चाहिए।।
             
    श्रवण कुमार यादव
       निजामाबाद, आजमगढ़

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