ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मंजिल की चाहत -कमलेश कुमार कारुष बबुरा रघुनाथ सिंह, हलिया मीरजापुर

मंजिल की चाहत 

  ( प्रेरणा गीत )
धुन- दिल गलती कर बैठा.

हमने सोच रख्खा है हमें मंजिल पाना है,
कर  सदा  मेहनत  हमें  मुकाम  पाना  है,
सफलता के अनेको रास्ते अवरुद्ध हो जाते,
फिर भी विना परवाह के आगे ही बढ़ जाना।
पलट पीछे नही मुड़ना उड़ना है सदा आगे,
लागे मन सदा आगे, आगे मन सदा लागे। 
अब मंजिल का क्या होगा,
अब मंजिल का क्या होगा हो यारा,
मंजिल का क्या होगा, 
ओ बोलो मंजिल का क्या होगा।

खामोशियों में कब तक बैठे रहेगे हम,
मौका है अभी तो कुछ आगे बढ़ें,
ये जिन्दगी भी क्या चीज है यारा,
बना मुकाम बस यूं मंजिल पे ही चढ़ें।
ओ आगे बढ़ें मंजिल चढ़ें हमें मुकाम पाना है,
बैठे ना रहें हम ब्यर्थ हमें आगे ही जाना है,
मिलता नही कुछ भी बिना आलस्य को त्यागे,
लागे मन सदा आगे लागे मन सदा आगे।
अब मंजिल का क्या होगा,
अब मंजिल का क्या होगा हो यारा,
मंजिल का क्या होगा,
ओ बोलो मंजिल का क्या होगा।

पहले पहले हो गयी लापरवाह की गलती,
पर अब नही होगी ओ  वैसी  कोई गलती,
हमें जिद बनाना है उस मंजिल को ही पाने की,
करें प्रयास ऐसा कि अब हो ना ये कोई गलती।
यहां अब खुद लगाना है जगाना रात दिन जागे, 
लागे मन सदा आगे आगे मन सदा लागे।
अब मंजिल का क्या होगा,
अब मंजिल का क्या होगा हो यारा,
मंजिल का क्या होगा,
ओ बोलो मंजिल का क्या होगा।

कलम से ✍️
कमलेश कुमार कारुष
बबुरा रघुनाथ सिंह, हलिया मीरजापुर

Post a Comment

0 Comments