शोषित नारी/मां भारती
कल मिली मुझे अप्सरा
चीथड़ो पहने हुई,
अस्मिता सी लूटी हुई,
मुझको बेगानी नही,
जानी पहचानी लगी।
बदहवास सी दौड़ती,
ठोकरे थी खा रही,
रोको कोई उसको जरा,
वाहनों से टकरा रही।
फिर जैसे तैसे उसको हम,
नजदीक अपने ला सके,
ढांढस बंधा धीरज दिला,
कुछ नीर उसको पिला सके।
चेहरे पे उसके तेज था,
पर पीड़ा से लवरेज था
आंखे थी डबडबाई हुई
लगती थी जहां की सताई हुई।
जब हमने पूंछा नाम तो,
पहले तो कुछ बोली नहीं,
फिर देखा सबको घूर के,
आंखे अंगारों भरी ,जैसे वर्षो से सोई नहीं।
वो नारी हूं मैं जो नग्न करके थी दौड़ाई गई,
वो नारी हूं मैं जो कई टुकड़ों में थी पाई गई,
वो बच्ची हूं मैं जिसको रोंदकर मारा गया,
वो ब्रद्धा भी जिसकी आबरू को ,
सरेआम उतारा गया।
वो मां भी हूं ,जिसके बच्चे,
आपस में सारे बंट गए,
धर्म मजहब सियासत में,
आधे आधे छंट गए।
वो नव विवाहिता पत्नी भी हूं,
जिसका पति अभी अभी शहीद हुआ,
वो गरीब भी हूं जिसका जीना,
मंहगाई में शदीद हुआ।
हां मैं ही हूं मां भारती ,
दर्द में कराहती ,
कोई नही पास ,
अकेली रह गई हूं,
असहनीय पीड़ा ,
दलन की सह रही हूं।।
पूनम सिंह भदौरिया
दिल्ली भारत

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