ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

बेटी का जन्म-राजेन्द्र सिंह श्योराण गुरुग्राम हरियाणा।

बेटी का जन्म


आज भले ही जगमग जग है, उस दिन अंधियारी छाई थी।
सबके चेहरे उतर गये थे, जिस दिन मैं जग में आई थी।।

गुमसुम थे दादा दादी भी, चाचा ने थी नाक चढाई।
ना ही नाचा कोई खुशी से, ना ही कोई बंटी मिठाई ।।
आंखों में उदासी पापा के, मां की भी आंख पथराई।
सोचा था एक लाल ही होगा, पर ये कहां से आई।।
ना ही गाये मंगल गीत, किसी ने ना ही दी बधाई थी।
सबके चेहरे उतरे हुए थे, जिस दिन मैं जग में आई थी।।

ओ दुनिया के रचने वाले, ये कैसा न्याय तुम्हारा है।
हमको लड़की तूने बनाया, इसमें क्या दोष हमारा है।।
अपेक्षित हमें रखा जाता है, लड़का सबको प्यारा है।
मनुष्य के लिए सदा औरत ने, अपना जीवन वारा है।।
क्या वो दिन मनहूस था, जिस दिन मैं तूने बनाई थी।।
सबके चेहरे उतरे हुए थे, जिस दिन मैं जग में आई थी।।

अगर ना होती लड़की तो, झांसी की लाज बचाता कौन।
कल्पना, सुनीता ना होती, अंतरीक्ष में हो आता कौन।।
कहां से मिलती मां हमको, पापा की परी बन पाता कौन।
लड़के ही लड़के होते तो, दीदी का प्यार दिलाता कौन।।
अन्याय सदा हमसे होता है, ये बातें सबने बताई थी।
सबके चेहरे उतरे हुए थे, जिस दिन मैं जग में आई थी।।

हम भी अच्छा पढ़-लिखकर, जग में आगे बढ़ सकती हैं।
अगर हमें भी प्यार मिले तो, हम सबकुछ कर सकती हैं।।
भर्ती होकर सेना में, दुश्मन का नाश कर सकती हैं।
खेलों में मेडल लाकर देश का, नाम ऊंचा कर सकती हैं।।
ना गूंजा था गीत कोई, ना दादी ने थाली बजाई थी।
सबके चेहरे उतरे हुए थे, जिस दिन मैं जग में आई थी।।

राजेन्द्र सिंह श्योराण
गुरुग्राम हरियाणा।

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