मैं और मेरी तन्हाई
एक अजब सी तन्हाई,
सबके मन पर है छाई,
अंदर सब कुछ रीता है,
बाहर बाहर मुस्काई,
पास पास रहते हैं सब पर,
दिलों के बीच बड़ी खाई।
उम्मीदें मत रख दूजों से,
साथ नहीं देती परछाई।
एक समय ऐसा आएगा,
दर्द भरी गायेंगे रुबाई।
कैसा जीवन कैसी घड़ियाँ,
नितांत अकेलापन लाई।
आधुनिकता की सदी भी
दूरी सदियों की लाई।
भीड़ बहुत है दुनिया में पर,
संग बस मैं और मेरी तन्हाई।
रश्मि ममगाईं


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