फूलों का बगीचा (हमारा जीवन)
माली ने एक बाग लगाया, रखा उसे संभालकर।
बीजारोपण कर दिया उसमें, अच्छी खाद डालकर।।
धीरे धीरे अंकुर फूटे, पतियां बाहर आ गयी।
पूरे बाग में पौधे थे, जिनसे हरियाली छा गई।।
उपवन की शोभा बढ़ी, भांति भांति के फूल खिले।
चहुं ओर खुशियां छाई, जब वे आपस में मिले।।
माली ने भी एक एक को, तोड़ना जब शुरू किया।
जो भी बचते जाते थे, उनका जलता था जिया।।
आखिर में जो फूल खिले, वो ही बाकी रह गए।
बाकी सारे फूल दोस्तों, राम नाम सत्य कह गए।।
हमसब भी हैं फूल उपवन के, माली ने लगाया है।
सबको खिलते अच्छे लगते, आखिर में मुरझाया है।।
कोई जवानी में तोड़ लिया, कोई तोड़ा है मुरझाने पर।
समय अलग बेशक हो लेकिन, हरेक पहूंचा मुहाने पर।।
जीवन की सच्चाई यही है, समझ कोई ही पाया है।
वापस सबको जाना है, जो भी इस जग में आया है।।
राजेन्द्र सिंह सा फूल भी, ना जाने कब मुरझा जाए।
उस मालिक की टोकरी में, ना जाने कब डाला जाए।।
राजेन्द्र सिंह श्योराण


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