ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मेरा देशी हरियाणा - राजेन्द्र सिंह श्योराण

मेरा देशी हरियाणा (एक कविता) 

देशी म्हारी बोली सै, देशी म्हारा खाणा सै।
पूरे देश और प्रदेशां मं, देशी मेरा हरियाणा सै।।

सीधे सादे लोग अड़ै के, बात पै मरज्यावैं सैं।
झूठ कपट ना राखैं मन म, सांची बात बतावैं सैं।।
पूछ लेवैं सैं उसकी राह भी, जिस गाम नहीं जाणा सै।

म्हारे छोरे ए कम ना थे, इब छोरी बी आगै जा री सैं।
हर क्षेत्र में हिस्सा ले, दुनिया म नाम कमा री सैं।।
हर मेडल व हर खिताब, अपने नाम कराणा सै।

जवान करैं सैं देश की रक्षा, बीर कमावैं खेतां मं।
रात दिन मेहनत करके, सोना उपजावैं रेता मं।।
मकसद सबका एक सै, बालकां न लायक बनाणा सै।

क्रिश गेल बी नाचण लाग्या, सपना आले गाणे पै।
कलाकार बी तुले रहवैं सैं, बढ़िया धून बनाणे पै।।
सारा देश नाच उठै सै, चाहे कोये बी गाणा सै।

हरियाणा की रोड़वेज का, पूरे देश मं नाम सै।
फर्राटे भर बस चालैं सैं, सबनै पहुंचावैं मुकाम पै।।
मुसाफिरां न दिये टेम पर, मंजिल पै पहूंचाणा सै।

ट्रांसपोर्टर बी पूरै देश मं, हरियाणा के छा रहे सैं।
एक जगहां तैं दूसरी जगहां, सबका माल ढुवारे सैं।।
कैसे बी हो हमनै तो बस, देश का विकास कराणा सै।

सेवाभाव भी जिंदा स, आज बी म्हारे गामां मं।
रिश्तेदार और दोस्त भी, हाथ बटावैं कामां मं।।
दुःख हो या हो खुशी, रिश्ता जरूर निभाणा सै।

ऐण्डी छोरे, ऐण्डी छोरी, ऐण्डी लोग लुगाई सैं।
जातपात म बंटकर भी, आपस में सब भाई सैं।।
राजेंद्र सिंह इसी चलन को, सबने आगे बढाणा सै।

देशी म्हारी बोली सै, देशी म्हारा खाणा सै।
पूरे देश और प्रदेशां मं, देशी मेरा हरियाणा सै।।

राजेन्द्र सिंह श्योराण।

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