ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गजल - सरल कुमार वर्मा


जब  कभी  गम  में  मुस्कुराता हूं
दर्द  जमाने   के  करीब  पाता  हूं

सुरमई  शाम  छुप गई  थी  जहां
उस दरख़्त के  तले चैन  पाता हूं

बेवजह  रूठे न   कोई आपस में
इसलिए  सबको  गले  लगाता हूं

कोई  झोका न गुजरे नफरत  का 
गीत  मै  प्यार   के  गुनगुनाता  हूं

हो न जाए  नासूर  जख्म दिल के 
इसलिए  लम्हों  को आजमाता हूं

नाव भंवर से  कभी तो निकलेगी 
रोज   उम्मीद    यही   लगाता  हूं

मेहनत की  धूप  सुख देगी"सरल"
छांव   से    इसलिए   कतराता  हूं

                     सरल कुमार वर्मा
                         उन्नाव,यूपी
                     

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