ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गीता का तो सार यही है-डाॅ. योगेश सिंह धाकरे "चातक" [ ओज कवि ] आलीराजपुर म.प्र.

सम्पूर्ण गीता शास्त्र का निचोड़ है, बुद्धि को हमेशा सूक्ष्म करते हुए महाबुद्धि आत्मा में लगाये रक्खो तथा संसार के कर्म अपने स्वभाव के अनुसार सरल रूप से करते रहो।....कृष्ण का दिव्य ज्ञान पार्थ के लियें, काव्य रचना के रूप में ढ़ालने की कोशिश की है।...अन्तिम आठ पंक्तियाँ रचनाकार का निष्कर्ष है

   !! गीता का तो सार यही है !!
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भय सें,  भाग कर कहाँ जायेगा,
पलायन को,हथियार बनायेगा !
तथ्य को समझ, सत्य से परख,
परिणाम,मुझसे होकर आयेगा !

ज्ञानी मत बन, ....तू अज्ञानी रह,
पार्थ तू मात्र,कृष्ण सतनामी रह !
अथाह शक्ति संचित है,यें सारथी,
जड़ चेतन मन सें,ऊर्ध्वगामी रह !!

ड़र मत किसी के,सीनें के नाप सें,
मात्र  पुण्य ही, जीतेगा  पाप सें !
संशय,  बीरता की निशानी नही,
तुझें तो लड़ना है,अपने आप सें !

देख विराट स्वरूप, भगवान का,
युध्द लड़  लें,आत्म सम्मान का !
भूमिका  तेरी, परम महान होगी,
ऐतिहासिक,तेरी पहचान होगी !!

करता तू  वह है, जो तू चाहता है,
किन्तु होगा वही,जो में चाहता हूँ !
पार्थ तू वह कर , जो में चाहता हूँ,
फिर होगा वही, जो तू चाहता है !

गूँढ़ ज्ञान है, गीता के विधान का,
बदला ले,द्रोपदी के अपमान का !
स्वजन तेरें, असत्य के पथ पर है,
पार्थ...तू महाभारत के रण में है !!

पितामह भी असत्य पथ गामी है,
गुरू द्रोण भी,दुष्टो के सहभागी है !
संख्या बल कहाँ मायने रखता है,
भगवान  तो, स्वंय्  तेरें सारथी है!

रण में तो, ....मात्र प्रण होता है,
रणचण्ड़ी का,अवतरण होता है !
अपनी भूमिका सें, तू न्याय कर,
असत्य पथिकों का, संहार कर !!

कृष्ण खड़े ना होतें, महाभारत मै,
सत्य पराजित हो जाता,भारत मै !
कुरु क्षेत्र मै जाना तो, मजबूरी थी,
महाभारत होनी,बहुत जरूरी थी !

अधर्म इस धरा पर, जब बढ़ता है,
प्राश्चित्य का मौका नही मिलता है!
बली महाबली, ख़ाक होतें देखें है,
इसें कृष्ण का 'गूँढ़' ज्ञान कहतें है !!

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स्वरचित....
डाॅ. योगेश सिंह धाकरे "चातक"
[ ओज कवि ] आलीराजपुर   म.प्र.
 @ सर्वाधिकार सुरक्षित...©®
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