कविता। किधर जाएं ?
वक्त पर या चेहरों पर ,
किस पर करे विश्वास न,
जाने कोन सी गली या चौराहे,
पर कोई शिकारी है खड़ा?
खुद को बचाए या संस्कारों ,
को हर वक्त ,इन सड़कों
पर सिमटे से हम चलते है।
कोन समझाए उन लोगो को,
हम भी एक इंसा है जिससे
तुम चील व कोवा की तरह नोचते हो।
इस डर से सताए न जाने कितने सपने
देखे तो सही पर पूरे नहीं हुए।
बैंक बैलेंस या सुविधाएं संस्कार नहीं,
सिखाते शायद इसलिए कही शिकारी ,
या दरिंदे परिवार में नजर आते।,
वक्त पर या चेहरों पर,
किस पर करे विश्वास न,
जाने कौन सी गली या चौराहे पर कोई
शिकारी है खड़ा ?
अनुप्रिया कुमारी
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