मैं वक्त हूं
मैं वक्त हूं जनाब,
हर पल चलायमान हूं।
समीर की तरह अदृश्य,
कर्मों में दृश्यमान हूं।।
बने को मिटाना,
मिटे को बनाना,
हर प्रकार का काम हूं।
मुझे किसी से डर नही,
मैं हर घटनाओं का अंजाम हूं।।
मैं वक्त हूं जनाब,
हर पल चलायमान हूं।
समीर की तरह अदृश्य,
कर्मों में दृश्यमान हूं।।
ना मैं मरता हूं,
ना मैं डरता हूं,
बहुत से राजाओं का ताज हूं।
यदि वे घमंड किये तो समझो,
उनके लिए मोहताज हूं।।
मैं वक्त हूं जनाब,
हर पल चलायमान हूं।
समीर की तरह अदृश्य,
कर्मो मे दृश्यमान हूं।।
रोते को हंसाया,
हंसते को रुलाया,
सिंह नादी को किया दास हूं।
कभी खुशियों का भरा खजाना,
तो कभी खिन्न मन उदास हूं।।
में वक्त हूं जनाब हूं,
हर पल चलायमान हूं।
समीर की तरह अदृश्य,
कर्मों में दृश्यमान हूं।।
जो समझे महाबली,
मैं तोड़ा उनके नली,
उनके सम्मुख थर थर लोगों का कंपान हूं।
उनका भी वक्त छिन गया,
मैं तो गतिमान हूं।।
मैं वक्त हूं जनाब,
मैं तो चलायमान हूं।
समीर की तरह अदृश्य,
कर्मो में दृश्यमान हूं।।
कैद मुझमें जिन्दगी,
मौत की भी बंदगी,
इन सबका निहित मान हूं।
मुझसे इतर कुछ भी नही,
कारुष अनंत ध्यान हूं।।
मैं वक्त हूं जनाब,
मैं तो चलायमान हूं।
समीर की तरह अदृश्य,
कर्मो में दृश्यमान हूं।।
कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष
मिर्जापुर
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